न्यू एज लर्निग

Feb 3, 2010, 04:09 IST

आप यात्रा करने के साथ-साथ फेवरेट क्लास भी अटेंड करना चाहते हैं, तो आने वाले दिनों में एम लर्निग के जरिए दोनों काम एक साथ कर सकते हैं..

वर्तमान समय में लोगों की व्यस्तता इतनी बढ गई है कि कई बार कुछ जरूरी काम भी अटक जाते हैं। इस मुश्किल से आज एक ही चीज निजात दिला सकती है और वह है-टेक्नोलॉजी। यही कारण है कि इस पर लोगों की निर्भरता बढती जा रही है। एजुकेशन सेक्टर के बारे में बात करें तो इसमें भी अब पढाई के परंपरागत तरीके को बदलने के लिए कोशिशें तेज हो गई हैं। इस दिशा में ई-लर्निग अब तक की नई टेक्नोलॉजी थी, लेकिन बदलते दौर में शीघ्र ही एम-लर्निग यानी मोबाइल के माध्यम से भी पढाई की जा सकती है।

क्या है एम लर्निग

मोबाइल लर्निग ई-लर्निग का विकसित रूप है। देश के किसी भी कोने में बैठे स्टूडेंट्स या टीचर्स अपने मोबाइल से इसका फायदा उठा सकते हैं। स्क्रीन पर विषय से संबंधित रेफरेंस मैटीरियल्स, क्विज, एक्सरसाइज उपलब्ध होने के कारण यह इंटरैक्टिव भी होता है। इसकी खासियत यह है कि आप कुछ सेकेंड्स में किसी भी प्रश्न के बारे में फीडबैक और टिप्स ले सकते हैं। कोर्स की मोटी-मोटी किताबों के इंपॉर्टेट कंटेंट का रैम (रैंडम एक्सेस मेमोरी) तैयार हो जाने से स्टूडेंट्स को काफी सहूलियत होती है।

कैसे हुई शुरुआत

वर्ष 1990 में यूरोपियन यूनिवर्सिटी में मोबाइल लर्निग का पहली बार प्रयोग किया गया। यहां मेडिकल और नर्सिग के स्टूडेंट्स इस तकनीक का खूब फायदा उठा रहे हैं। वर्ष 1984 से यूजीसी इंफॉर्मेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर कंट्रीवाइड क्लासरूम (सीडब्लूसीआर) चला रही है। इसकी सफलता को देखते हुए वर्ष 1993 में अलग से कंसोर्टियम फॉर एजुकेशनल कम्युनिकेशन (सीईसी) की स्थापना हुई, जो एजुकेशनल प्रोग्राम बनाने में लगे हुए हैं। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में 17 मीडिया सेंटर्स हैं, जिनका एजुकेशनल प्रोग्राम वर्ष 2004 से व्यास चैनल पर प्रसारित किया जा रहा है। लेक्चर्स इंटरनेट और मोबाइल पर भी उपलब्ध होते हैं। स्क्रिप्ट राइटिंग फॉर फिल्म ऐंड टीवी के ई-कोर्स की शुरुआत भी की गई है। भारत के अलावा, 7-8 देशों के स्टूडेंट्स इसका लाभ उठा रहे हैं।

कैसे करता है काम

टीवी और रेडियो की तरह मोबाइल का भी खास सॉफ्टवेयर होता है, जिसके आधार पर वह कॉल और मैसेज रिसीव और सेंड करता है। मोबाइल पर स्टडी मैटीरियल उपलब्ध कराने के लिए इसे लर्निग ऑब्जेक्ट रिपॉजिटॅरी (एलओआर) से जोडा जाता है। यह सर्वर बेस्ड नेटवर्क है। जैसे ही स्टूडेंट्स किसी निश्चित नंबर पर अपने सवाल को टाइप कर मैसेज करेंगे, तो उनका मोबाइल नेटवर्क एलओआर से कनेक्ट हो जाएगा। यह कुछ ही क्षण में उत्तर सर्च कर मोबाइल नेटवर्क पर ट्रांसफर कर देगा, जो संबंधित स्टूडेंट के नंबर पर स्मॉल वीडियो या टेक्स्ट मैसेज के रूप में आ जाएगा।

एलओआर

हायर एजुकेशन के कठिन कॉन्सेप्ट्स को 2-3 मिनट का वीडियो प्रोग्राम बनाकर ऑनलाइन रिपॉजिटरी बनाई जाती है। सभी रिपॉजिटरी वेब बेस्ड होते हैं। कुछ लर्निग ऑब्जेक्ट्स के लिए स्पेशल ब्राउजर प्लग-इंस या स्टैंडर्ड मीडिया प्लेयर्स की जरूरत पडती है। आप इस पर एक पैराग्राफ के बराबर छोटा या ऑनलाइन कोर्स जितना बडा लर्निग ऑब्जेक्ट्स देख सकते हैं। यह एचटीएमएल/टेक्स्ट फाइल/जावा/फ्लैश, क्विक टाइम मूवीज के रूप में आपके सामने उपलब्ध रहेगा। किसी भी जीपीआरएस (जनरल पैकेट रेडियो सर्विस) वाले मोबाइल से इसका लाभ उठाया जा सकेगा। यदि आप एम लर्निग के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो संपर्क करें : कंसोर्टियम फॉर एजुकेशनल कम्युनिकेशन(इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर ऑफ यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन), आईयूएसी कैम्पस,अरुणा आसफ अली मार्ग, नई दिल्ली फोन नं. : 011 26897418-19

वेबसाइट : www.cec-ugc.org

स्मिता 

शिक्षा का अनूठा माध्यम

एमलर्निग में किस तरह की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी?

पहले चरण में विषयों से संबंधित छोटे-छोटे प्रश्न, फॉर्मूला जिसे हल करने और समझने में स्टूडेंट्स को परेशानी होती है, को शामिल किया गया है। स्टूडेंट्स एक पर्टिकुलर नंबर पर अपने प्रश्न एसएमएस करेंगे, तो उसका जवाब मोबाइल स्क्रीन पर आ जाएगा। हालांकि मोबाइल स्क्रीन छोटी होने के कारण इसकी अपनी सीमाएं हैं, इसलिए कोर्स करने के लिए स्टूडेंट्स को इंटरनेट का सहारा लेना होगा।

क्या प्रोफेशनल कोर्स से संबंधित कठिन सवाल भी पूछे जा सकते हैं?

फिलहाल इसमें ह्यूमेनिटीज, साइंस, मैथ्स, कम्प्यूटर साइंस को शामिल किया जा रहा है। चूंकि प्रोफेशनल कोर्सो, जैसे-इंटीरियर डेकोरेशन, फैशन डिजाइनिंग आदि में विजुअॅल्स अधिक होते हैं, इसलिए मोबाइल की स्क्रीन पर शो करना कठिन होगा। हालांकि मोबाइल लर्निग के विस्तृत चरणों में इन कोर्सो को भी शामिल किया जा सकता है।

दूर-दराज के स्टूडेंट्स इसका कैसे फायदा उठा सकेंगे?

मोबाइल लर्निग का फायदा गांवों में रहने वाले विद्यार्थी भी उठा सकेंगे, क्योंकि विभिन्न विषयों से संबंधित सामग्रियां अलग-अलग भाषाओं में उपलब्ध होंगी, यहां तक कि रीजनल लैंग्वेज में भी। यदि वे ई-कोर्स करना चाहते हैं, तो यह सीईसी की वेबसाइट पर उपलब्ध है। साथ ही, अलग-अलग विषयों के प्रोफेसर्स की ईमेल और फोन नंबर भी एसएमएस द्वारा भेजा जाएगा।

स्टूडेंट्स कब तक इसका लाभ उठा सकेंगे?

केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय शिक्षा मिशन की अहम भागीदारी है। कई विषयों के एजुकेशनल प्रोग्राम के मॉड्यूल तैयार हो रहे हैं। उनके ई-कंटेंट सहित मोबाइल कंटेट पर भी तेजी से काम चल रहा है। टेलीफोन नेटवर्क कंपनी और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ग्लोबल टेकऑफ से बातचीत हो रही है। कुछ ही महीनों में यह हमारे सामने होगा।

सीईसी के डायरेक्टर डॉ. तिलक आर केम से बातचीत के प्रमुख अंश

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