बनाएं कॅरियर की स्ट्रेटेजी

Dec 21, 2011, 16:28 IST

आज दुनिया तेजी से बदल रही है वैश्विक नेतृत्व देने की होड में देश आक्रामक कदम उठाने से नहीं चूक रहे हैं

आज दुनिया तेजी से बदल रही है। वैश्विक नेतृत्व देने की होड में देश आक्रामक कदम उठाने से नहीं चूक रहे हैं। स्ट्रेटेजिक क्षमताओं का विकास देशों की इसी रणनीति का हिस्सा माना जाता है। अमेरिका के साथ हुए असैन्य परमाणु समझौता, अंतरिक्ष को अपनी जद में लेते सैटेलाइट्स, कॉम्बेट हार्डवेयर्स का विकास इसी क्रम में रखे जा सकते हैं। जिस प्रकार से भारत दुनिया की महाशक्तियों के बीच अपनी गहरी पैठ बना रहा है, उसके लिए स्ट्रेटेजिक क्षेत्र की ओर ध्यान देना लाजिमी हो गया है। उस पर इकोनॉमी की तेज रफ्तार भी इस राह में चाल दोगुनी कर रही है। खुद भारत सरकार आज न केवल अपने बजट का एक बडा हिस्सा डिफेंस, स्पेस जैसे क्षेत्रों पर खर्च कर रही है, बल्कि काबिल युवाओं को भी इस सेक्टर में लानेलिए अनेक तरह से प्रयासशील है। ऐसे में यदि आप भी देश के महाशक्ति बनने के महान सपने में साझीदार बनना चाहते हैं तो स्ट्रेटेजिक सेक्टर आपके लिए अलग और बेहतरीन कॅरियर विकल्प बन सकता है।

आखिर क्या है स्ट्रेटेजिक सेक्टर

कहते हैं किसी भी देश की परिभाषा तभी पूर्ण होती है,जब उसके तीन मूलभूत तत्व उसके साथ हों- तय क्षेत्रफल, उसमें रहने वाले लोग, उन लोगों और क्षेत्रफल को नियंत्रित व निर्देशित करने वाली सरकार। ये वे तत्व होते हैं, जिनकी मदद से देश खुद की संप्रभुता का दावा करते हुए सफल राष्ट्रजीवन की गाथा लिखते हैं। भारत जैसे देश के लिए तो इस चीज का महत्व और भी बढ जाता है, जिसे अपने पूरे इतिहास में रह-रह कर बाच् आक्रमणकारियों का सामना करना पडा है और जिसकी कीमत हमें अपनी संप्रभुता देकर चुकानी पडी है। आजादी के बाद 64 सालों की अवधि में भी हमें चार-चार युद्धों, कई छोटी लडाइयों, न जाने कितने आंतरिक उप्रद्रवों से जूझना पडा। यही कारण हैकि देश की सीमाओं की रक्षा के लिए हर मुमकिन बंदोबस्त किए गए हैं। तीनों ही सेनाओं का आधुनिकीकरण, डिंफेंस इंफ्र ास्ट्रक्चर का निर्माण, लॉजिस्टिक सपोर्ट आदि इन्हीं प्रयासों के हिस्से हैं। इस क्षेत्र के बढते पोटेंशियल के चलते यह फील्ड एक सेक्टर की शक्ल ले चुका है, जो राष्ट्र की सुरक्षा के साथ सुरक्षित कॅरियर की गांरटी दे रहा है।

बढते महत्व, बढता अवसर

देश में बडे पैमाने पर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बो‌र्ड्स, डीआरडीओ, न्यूक्लियर रिएक्टर की स्थापना हुई। इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के अनुसार आज भारत दुनिया का सबसे बडा हथियारों का खरीददार है। देश के डिफेंस बजट का करीब 70 फीसदी हिस्सा हथियारों की ओवरसीज खरीद पर खर्चहोता है। ऐसे में सरकार डोमेस्टिक वेपेन इंडस्ट्री को बढावा देने में लगी है। इसके लिए सरकार, साल दर साल डीआरडीओ, इसरो व उनकी सब्सिडरी संगठनों की बजट हिस्सेदारी बढा रही है व ज्यादा से ज्यादा युवाओं को इस क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए प्रेरित भी कर रही है। नेशनल साइंस ओलंपियाड, किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (केवीपीवाई) सरकार की इस पहल की बानगी भर हैं।

टेक्निकल्स की पहली पसंद

स्ट्रेटेजिक सेक्टर एक बहुत बडा क्षेत्र है। देश की बढती जरूरतों के मद्देनजर इस सेक्टर में नई चीजों का समावेश हुआ है। पहले इस क्षेत्र को रक्षा क्षेत्र से ही जोडकर देखा जाता था, लेकिन आज इसमें कई चीजें जैसे परमाणु शक्ति, स्पेस भी शामिल हैं। इस क्षेत्र के विस्तार के चलते यहां उन युवाओं के लिए ज्यादा अवसर पैदा हुए हैं, जो अपने तकनीकी ज्ञान केबल पर देश की तरक्की में हिस्सेदारी चाहते हैं। डीआरडीओ, इसरो, बार्क , डीएई (डिपार्टमेंट ऑफ ऐटॉमिक एनर्जी) आदि के रूप में आपके पास अनेक राहें हैं, जिसमें आप अपनी क्षमता के मुताबिक किसी में भी इंट्री ले सकते हैं। डीआरडीओ में प्रवेश के लिए आप डायरेक्ट इंट्री, एसईटी (सांइटिस्ट इंट्री टेस्ट) लैटरल इंट्री स्कीम, फैलोशिप, ओपेन कैंपस सेलेक्शन के जरिए राह चुन सकते हैं। एटॉमिक सेक्टर में प्रवेश के लिए ओरियंटेशन कोर्स फॉर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट एंड सांइस पोस्ट ग्रेजुएट, डीएई फेलोशिप स्कीम की राह पकड सकते हैं। स्पेस में रुचि रखने वालों के लिए सेंट्रलाइज्ड रिक्रूटमेंट, फेलोशिप प्रोग्राम, लाइव रजिस्टर फॉर पीएचडी प्रोफेशनल्स प्रोग्राम मौजूद हैं।

राष्ट्र निर्माण और कॅरियर सुरक्षा

यह एक ऐसा क्षेत्र हैं, जो सीधे-सीधे देश के वर्तमान और उससे भी ज्यादा भविष्य पर असर डालता है। स्ट्रेटेजिक सेक्टर में आने वाले अंतरिक्ष विज्ञान को ही लें, तो तस्वीर साफहो जाती है। देश को स्ट्रेटेजिक डेप्थ देने के साथ-साथ इस क्षेत्र की बदौलत देश की कुल खेती योग्यभूमि, बंजर भूमि, वनक्षेत्र, देश की सीमाएं, समुद्री सीमाएं, जलवायु परिवर्तन आदि के बारे में जानना संभव हुआ है। यह सब डेटा भारत ही नहीं, बल्कि किसी भी देश के विकास के लिए जरूरी है। यही बात एटॉमिक सेक्टर पर भी लागू होती है, जिसके चलते भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश की बिजली जरूरतें पूरी हो सकती हैं वो भी बेहद कम खर्च पर। इस प्रकार कह सकते हैं कि यह क्षेत्र आपको राष्ट्रनिर्माण व उसकी सुरक्षा दोनों का अवसर एक साथ देता है।

एक सेक्टर, कई विकल्प

देश में ऐसे युवाओं की कमी नहीं हैजो डिफेंस में अपना कॅरियर बनाना चाहते होंगे, लेकिन कई कारणों से वे इस सपने को पूरा नहीं कर सके। यदि आप भी ऐसे ही लोगों में हैं तो निराश होने की जरूरत नहीं। स्ट्रेटेजिक सेक्टर ज्वाइन कर आप अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, डिफेंस से जुड सकते हैं। यहां कॅरियर के कई उम्दाविकल्प हैं..

डीआरडीओ

डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) की स्थापना 1958 में की गई थी। उद्देश्य था, देश को रक्षा प्रौद्योगिकी व उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाना। आज 53 साल बाद डीआरडीओ अपनी जिम्मेदारियां सटीक ढंग से निभा रहा है। पूरे देश में फैली अपनी 50 लैबोरेटरीज, साढे सात हजार से ज्यादा वैज्ञानिकों, इंजीनियरों व करीब 20 हजार टेक्निकल व सपोर्ट स्टाफके साथ देश की तीनों सेनाओं के आधुनिकीकरण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। डीआरडीओ में प्रवेश के यूं तो कईचैनल हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्णडायरेक्ट इंट्री स्कीम व कैं पस सेलेक्शन हैं। इसके लिए आपको केमिकल / कंप्यूटर / कम्यूनिकेशन/ इलेक्ट्रॉनिक्स मैकेनिकिल इंजीनयरिंग में बीई या बीटेक होना होगा। कैंपस सेलेक्शन के लिए आईआईटी, आईआईएस, एनआइटी फाइनल इयर छात्रों का सेलेक्शन किया जाता है। यही नही रजिस्ट्रेशन ऑफ स्टूडेंट्स विद स्कोलेस्टिक एप्टीट्यूड (रोसा) के अंर्तगत भी यहां फ्रे श पीएचडी धारको को अवसर मिलते हैं।

एचएएल

एचएएल यानि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमटेड की स्थापना 1940 में हुई। यह विश्व युद्ध का दौर था। ऐसे में एचएएल की स्थापना ब्रिटिश एयर फोर्स के लॉजिस्टक सपोर्ट के लिए हुईथी। लेकिन आज इसकी गिनती एशिया के सबसे बडे एयरोस्पेस कंपनियों में होती है। यह सैन्य विमानों, इंजनों, कम्यूनिकेशन नेवीगेशन के साथ स्पेस उपकरणों की मैनुफैक्चरिंग व असेंबलिंग करता है। दुनिया की कई नामी गिरामी एवियेशन कंपनियों जैसे मिग, सुखोई, बोइंग, एयरबस,डोर्नियर आदि के विमानों के निर्माण में भी में एचएएल कारगर भूमिका निभा रहा है। हाल ही में एलसीए यानि तेजस के सफल निर्माण व परीक्षण से इसने अपनी भूमिका फिर सबित की है। आज जिस प्रकार भारत तेजी से विमान सौदों के साथ उनका मैनुफक्चिंिरंग लाइसेंस हासिल कर रहा है, यहां जॉब की संभावनाएं बढी है।

इसरो-स्पेस

इसरो यानि इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन स्पेस में देश की नईतस्वीर उकेर रहा है। इसकी आधिकारिक शुरुआत 1969 से हुई व इसी के साथ 1972 में डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस (डीओएस) भी स्थापित किया गया। प्रारंभ करने का उद्देश्य सैटेलाइट्स के जरिए देश के संसाधनों की सही परख व उनका समुचित इस्तेमाल था। 1975 में आर्यभट्ट की सफल लॉन्चिग के बाद से अब तक इसरो, छोटे बडे 36 क म्यूनिकेशन व कॉमर्शियल सैटेलाइट अंतरिक्ष भेज चुका है। बढते कॅरियर स्कोप के चलते यहां योग्य वैज्ञानिकों की बेहद मांग है, जिसे पूरा करने के लिए सरकार ने 2007 मेंइंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस सांइस एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना की थी। यह संस्थान, महात्वाकांक्षी अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिए काबिल युवाओं की तलाश करता है। यहां सेट्रलाइज्ड रिक्रूटमेंट, पीएचडी प्रोफेशनल्स, रिसर्चफेलोशिप जैसे चैनल्स के माध्यम से युवा सेलेक्ट किए जाते हैं। इंट्री के लिए संबधित स्ट्रीम में बीई, बीटेक की आवश्यकता होती है।

डीएई (डिपार्टमेंट ऑफ एटोमिक एनेर्जी)

देश में डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी की स्थापना 1958 में की गई थी। शुरूआत में इसका इकलौता लक्ष्य कुल ऊर्जाउत्पादन में न्यूक्लियर एनर्जी का हिस्सा बढाना था। पर आज मेडिकल से लेकर कृषि तक में न्यूक्लियर एप्लीकेशन के जरिए यह प्रभावी भूमिका निभा रहा है।इसके अंर्तगत कार्य करने वाले सेंटर फॉर न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, सेंटर फॉर एडवांस टेक्नालॉजी इस क्षेत्र में सक्रिय प्रमुख संस्थान हैं।

बार्क

परमाणु ऊर्जा के उपयोग बहुउद्देश्यीय हैं। नागरिक जरूरतों के अलावा सैन्य लक्ष्यों की पूर्ति में भी इसका इस्तेमाल होता है। देश के अलग-अलग हिस्से में स्थापित किए गए परमाणु रिएक्टर आज इन लक्ष्यों को सफलतापूर्वक पूरा कर रहे हैं। बार्क, न्यूक्लियर रिसर्चके क्षेत्र में देश का प्रमियर संस्थान है। इसकी स्थापना 1954 में हुई। 1966 में इसका नाम बदलकर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर कर दिया गया। यह सैन्य,असैन्य जैस कई लक्ष्यों की पूर्ति करता है। देश में न्यूक्लियर ऐनेर्जी के क्ष्ेात्र में शोध को प्रोत्साहित करते हुए बार्क ने इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटोमिक रिसर्च,राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस टेक्नोलॉजी, वैरियेबल एनेर्जी साइक्लोट्रोन सेंटर(वीइसीसी) जैसे संस्थानों का संचालन करता है।

कारगर है ट्रेनिंग प्रोग्राम

इस फील्ड में आज दक्ष टेक्निकल लोगों की जरूरत है। 1957 में स्थापित भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) इन दिनों ऐसे ही योग्य युवाओं की सप्लाई लाइन बना हुआ है। इसके अंर्तगत सेंटर फॉर एडवांस टेक्नोलॉजी, इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च, न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स, सेंटर ऑफ न्यूक्लियर पॉवर कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड जैसे ट्रेनिंग स्कूल आते हैं। ये समय-समय पर जूनियर व सीनियर रिसर्च फेलोशिप प्रोग्राम के लिए युवाओं को आंमत्रित करते हैं। यंग सांइटिस्ट रिसर्च प्रोग्राम के जरिए भी आप यहां दस्तक दे सकते हैं। यह सेक्टर विशुद्ध रूप से सांइस स्ट्रीम वाले युवाओं के लिए है। इसमें इंट्री के कई चैनल हैं। ओरियंटेशन कोर्स फॅार इंजीनियरिंग गे्रजुएट, डायरेक्ट इंट्री स्कीम, डीएई ग्रेजुएट फेलोशिप स्कीम आदि कुछ ऐसे ही इंट्री चैनल हैं।

रक्षा, विकास व शिक्षा का त्रिकोण

स्ट्रेटेजिक सेक्टर वह हाईवे है, जहां से डिफेंस, डेवलपमेंट और एजुकेशन जैसे छोर को जाने वाले रास्ते गुजरते हैं। ये तीनों ही चीजें एक दूसरे की पूरक हैं और देश के संपूर्ण विकास की जरूरत भी। स्ट्रेटेजिक सेक्टर एक त्रि-आयामी क्षेत्र है।देश के विकास के लिए जरूरी सभी चीजें इस त्रि-आयामी स्पेक्ट्रम में आसानी से देखी जा सकती हैं। दरअसल ये तीनों ही क्षेत्र देश ही नहीं बल्कि आम इंसान के भी संपूर्ण विकास के लिए जिम्मेदार हैं। विकास, जहां देश के लोगों के जीवनस्तर को ऊपर ला उनकी जिंदगियों में समृद्धि के रंग घोलता है, तो दूसरी ओर सुरक्षा को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता जो विकास की अहम शर्तहै।

डिफेंस

रक्षा क्षेत्र, स्ट्रेटेजिक सेक्टर का सबसे अहम पहलू है। आधुनिक रक्षा प्रणालियों का विक ास, सैन्य साजो-सामान के निर्माण इन्हीं की जिम्मेदारियों में आते हैं। देश में आर्डिनेंस फैक्ट्री बो‌र्ड्स, एचएएल, भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड, गोवा शिपयार्ड लिमिटेड, गार्डन रीच शिप बिल्डर्स एंड इंजीनियर्स जैसे संगठन देश की डिफेंस लाइन को मजबूत कर रहे हैं। बढते डिफेंस प्रोक्योरमेंट के चलते जॉब के अच्छे अवसर हैं।

डेवलेपमेंट

विकास की राह में भी यह फील्ड खास भूमिका निभाता है। रिमोट सेंसिंग टेक्नोलॉजी, न्यूक्लियर पॉवर स्टेशन, एग्रीकल्चर, लैंड बेस्ड डेटा जैसी बहुत सी चीजें इसी में आती हैं। देश के जमीनी विकास में यह क्षेत्र महत्वपूर्ण किरदार निभाता है।

एजूकेशन

शिक्षा, विकास की एक बडी जरूरत है। इन दिनों विकास व उसके पूरक मानी जाने वाली एजूकेशन दोनों को ही स्ट्रेटेजिक क्षेत्र नईचमक दे रहा है। हाल ही में अंतरिक्ष भेजा गया एडूसेट इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। आज के सैटेलाइट युग में इसकी मदद से शिक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव देखे जा सक ते हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा चलाईजा रही किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना, यंग सांइटिस्ट रिसर्च प्रोग्राम,रिसर्च फैलोशिप प्रोग्राम इत्यादि क्वालिटी एजूकेशन को बढावा दे रहे हैं।

जेआरसी टीम

Jagran Josh
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Education Desk

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