29 जनवरी 2015 को सेवानिवृत्त न्यायधीश ए पी शाह की अध्यक्षता में भारत के 20वें विधि आयोग ने वाणिज्यिक डिवीजन और उच्च न्यायालयों के वाणिज्यिक अपीलीय डिवीजन और वाणिज्यिक अदालत विधेयक- 2015 शीर्षक से अपनी 253 वीं रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी.
अपनी रिपोर्ट में विधि आयोग ने भारत में वाणिज्यिक अदालतों की स्थापना करने की माँग की है ताकि बिना किसी देरी के समयबद्ध ढंग से किसी भी विवाद को सुलझाया जा सके.
ये वाणिज्यिक अदालतें उच्च मूल्य के मामलों के शीघ्र निपटारे को सुनिश्चित करेंगी जिसमे देरी से विदेशी निवेशक हतोत्साहित हो सकते हैं, यह भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान ‘मेक इन इंडिया’ के साथ विदेशी निवेशकों को भी प्रोत्साहित करेंगी.
वाणिज्यिक अदालतों पर ये विधेयक फरवरी 2015 से शुरू होने वाले बजट सत्र में पेश किया जाएगा.
वाणिज्यिक अदालतों पर विधेयक 2015 के प्रावधान
यह वाणिज्यिक विवाद को उन विवाद के रूप में परिभाषित करता है जिनमे तकनीक, बौद्धिक संपदा और बीमा कंपनियों के लिए सेवा उद्योग में शेयरधारकों, संयुक्त उद्यम समझौते और सदस्यता और निवेश समझौतों से उत्पन्न होने वाले विवाद शामिल हैं.
यह केंद्र, राज्य सरकार और किसी भी ऐसे इकाई जो सार्वजनिक कार्य का संपादन करती हो के बीच होने वाले विवाद को भी वाणिज्यिक विवाद के रूप में परिभाषित करती है.
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि अब तक देश की पांच उच्च न्यायालयों दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, मद्रास और हिमाचल प्रदेश में लंबित वाणिज्यिक मामलों की संख्या 16,884 है जो सभी दीवानी मामलों का 51.7 प्रतिशत है.
रिपोर्ट ने कम्पनियों के मुकदमों को कम समय में निपटाने के लिए सिंगापुर और लन्दन की वाणिज्यिक अदालतों की तर्ज़ पर भारत में विशेष वाणिज्यिक अदालत बनाने का सुझाव दिया है.
बिल में फैसले की समय सीमा 90 दिन निर्धारित की गई है.
इस बिल में देश भर में कम से कम 60 वाणिज्यिक अदालतें या प्रत्येक राज्य में दो से तीन वाणिज्यिक अदालतें गठित करने का प्रस्ताव किया गया.
बिल में वाणिज्यिक विवाद को नागरिक विवाद से अलग कर समाधान तंत्र प्रणाली में सुधार करने का सुझाव दिया गया है.
इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि अपील वाणिज्यिक अदालतों से वाणिज्यिक अपीलीय डिविजन में जाएगी जहाँ दो न्यायधीशों की पीठ इस पर अपना फैसला देगी और अंतरिम फैसलों के विरूद्ध अपील वर्जित होगी.
वाणिज्यिक अदालतों में वाणिज्यिक विवादों में विशेषज्ञता प्राप्त और अनुभवी न्यायाधीश होंगे जिनका निश्चित कार्यकाल दो साल हो सकता है.
इसमें राष्ट्रीय और राज्य न्यायिक अकादमियों द्वारा न्यायाधीशों को प्रशिक्षण और सतत शिक्षा प्रदान करने का भी सुझाव दिया गया है.
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