सुप्रीम कोर्ट ने 06 मई 2018 को कहा है कि वयस्क जोड़े को शादी के बिना भी एकसाथ रहने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘लिव इन’ संबंधों को विधायिका ने भी मान्यता दे दी है और इन संबंधों को महिला घरेलू हिंसा रोकथाम कानून 2005 के प्रावधानों के तहत मान्यता मिली है.
सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल की तुषारा से कहा कि वह अपने पति या परिवार में से किसके साथ रहना चाहती है, इसका फैसला खुद कर सकती है.
केस: पृष्ठभूमि |
सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां केरल उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ नंदकुमार की याचिका पर सुनवाई करते वक्त कीं जिसमें तुषारा के साथ उसकी शादी को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उसकी शादी की कानूनी उम्र नहीं हुई है. |
बाल विवाह निषेध कानून के तहत कोई लड़की 18 साल से पहले जबकि कोई लड़का 21 साल से पहले शादी नहीं कर सकता. |
सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाने वाले नंदकुमार 30 मई 2018 को 21 साल के हो जायेगे. |
उच्च न्यायालय ने तुषारा को उसके पिता के संरक्षण में भेज दिया था और कहा कि वे नंदकुमार की ‘कानूनी रूप से विवाहित ’ पत्नी नहीं है. |
कोर्ट के फैसले का मुख्य हाइलाइट्स:
- जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने यह फैसला सुनाया था.
- कोर्ट ने हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि कानून में ऐसी शादी शुरू से शून्य नही होती बल्कि शून्य घोषित कराई जा सकती है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लड़का-लड़की दोनों हिंदू हैं. उन दोनों की शादी, शादी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक शून्य विवाह नहीं है.
- कोर्ट ने कहा कि धारा 12 के प्रावधानों की मानें तो, इस तरह के मामले में यह पार्टियों के विकल्प पर केवल एक अयोग्य शादी है.
- सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि केरल हाईकोर्ट को शादी रद्द करने का फैसला नहीं देना चाहिए था. इस मामले में भी तुषारा ने नंद कुमार के साथ रहने की इच्छा जताई है और उसको ये चुनाव करने का अधिकार है कि वो किसके साथ रहना चाहती है.
- कोर्ट ने कहा कि अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का सभी को अधिकार है. इस अधिकार को कोई छीन नहीं सकता. चाहे वह कोई कोर्ट हो, व्यक्ति हो या कोई संगठन.
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