अफगानिस्तान में तालिबान का राज आ गया है. अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की हड़बड़ी में हुई वापसी से पैदा हुए हालात ने लोगों को वियतनाम युद्ध की याद दिला दी है. पूर्वी एशिया के इस देश में अमेरिका आया तो कम्युनिज्म को खत्म करने के लिए था, लेकिन परिस्थिति ऐसी बनी कि उसे उल्टे पांव भागना पड़ा.
उस समय भी अमेरिका को अपने राजनयिकों को निकालने के लिए साइगॉन में अपने दूतावास के ऊपर हेलिकॉप्टर उतारने पड़े थे. अमेरिका ने इस बार भी अपने 3000 सैनिकों को काबुल दूतावास खाली कराने के लिए तैनात किया हुआ है. आइए जानते हैं कि आखिर साइगॉन क्या था जिसे अफगानिस्तान की इस अफरातफरी से जोड़कर देखा जा रहा है.
साइगॉन में दूतावास
वियतनाम में अमेरिका अपना प्रभुत्व जमाने और कम्युनिज्म खत्म करने के नाम पर आया था. लेकिन हालात ये हो गए थे कि अमेरिका को अपने राजनयिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए साइगॉन में अपने दूतावास के ऊपर हेलिकॉप्टर उतारने पड़े थे. ठीक ऐसा ही हाल इन दिनों अफगानिस्तान का भी है, जहां अमेरिकियों को निकालने के लिए बाइडन सरकार ने अपनी ताकत झोंक दिया है.
वियतनाम युद्ध क्या था?
वियतनाम युद्ध साल 1955 से साल 1975 तक लड़ा गया था. अमेरिका ने इस दौरान अपने सहयोगी दक्षिणी वियतनाम को उत्तरी वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार से बचाने के लिए सेना भेजी थी. जिस कारण यह रूस के शागिर्द युद्ध उत्तरी वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार और अमेरिकी सेना के बीच लड़ा गया. अमेरिका ने अगले तीन साल के भीतर वियतनाम में अपने 3 लाख सैनिकों को तैनात कर दिया.
बाद में, राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1969 में पद के लिए चुने जाने के बाद युद्ध की जिम्मेदारी संभाली. इस दौरान अमेरिका में सैनिकों की वापसी एक बड़ा मुद्दा बन चुका था. जनवरी 1974 में अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया, और अमेरिकी सैनिकों की वापसी शुरू कर दी. इसे पेरिस शांति समझौते के नाम से जाना जाता है.
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