इंग्लैंड आधरित चिकित्सीय पत्रिका 'द लांसेट' द्वारा 18 फरवरी 2017 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया कि प्रत्येक वर्ष वायु प्रदूषण के कारण 10 लाख से अधिक भारतीय लोगों की मृत्यु होती है. विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में भारत के चुनिंदा शहर भी शामिल हैं.
यह अध्ययन वर्ष 2010 तक एकत्रित किये गये आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित हैं तथा इन आंकड़ों में भारत की स्थिति को स्पष्ट रूप से बताया गया है. अध्ययन के अनुसार भारत में प्रति मिनट 2 लोग वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं.
अध्ययन के मुख्य बिंदु
• वायु प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन सीधे रूप से एक-दूसरे से जुड़े हैं तथा इनसे निपटना आवश्यक है अन्यथा स्थिति और भी अधिक बिगड़ सकती है.
• विश्व में 27.34 लाख बच्चों का जन्म समय से पूर्व होता है जिसमें पीएम 2.5 के प्रभाव को नाकारा नहीं जा सकता.
• समय से पूर्व जन्म के मामलों से दक्षिण एशिया सबसे अधिक प्रभावित है. यहां 16 लाख जन्म समय पूर्व होते हैं.
• उत्तर भारत में छाने वाले स्मॉग की स्थिति प्रत्येक वर्ष बिगडती जा रही है जिससे भारी नुकसान हो रहा है. प्रत्येक मिनट भारत में दो लोग वायु प्रदूषण के कारण मारे जा रहे हैं.
• इससे भारत में आर्थिक नुकसान भी हो रहा है. यदि आय के क्रम में देखा जाए तो इससे 38 अरब डॉलर का नुकसान होता है.
• पूरे विश्व में समय से पूर्व होने वाले जन्म के बाद होने वाली मृत्यु में वायु प्रदूषण सबसे घातक घटक है.
• इस अध्ययन में शामिल 48 वैज्ञानिकों ने पाया कि पीएम 2.5 के स्तर या सूक्ष्म कणमय पदार्थ (फाइन पार्टिक्युलेट मैटर) में पटना और दिल्ली विश्व के सबसे प्रदूषित शहर हैं. यह कण हृदय को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं जिसके चलते इन शहरों में हृदयघात के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
• द लांसेट के अनुसार कोयले से संचालित होने वाले बिजली संयंत्र वायु प्रदूषण में 50 प्रतिशत जिम्मेदार हैं.
इस अध्ययन में विश्वभर के संस्थानों को शामिल किया गया था जिसमें 16 अकादमिक संस्थान भी शामिल हैं. इनमें यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, सिंगुआ यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी आदि विशेष रूप से शामिल हैं.
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