केंद्र सरकार नि:शुल्क व्यापार समझौते (FTA) में शामिल होने की अपनी रणनीति को फिर से परिभाषित कर रही है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि, ये संधियां आर्थिक और रणनीतिक लाभ प्रदान कर रही हैं.
शांतिपूर्ण देशों के साथ गठबंधन पर अलग से भी ध्यान दिया गया है, विशेष रूप से उन देशों के साथ, जिनके साथ भारत का ज्यादा व्यापार घाटा नहीं है.
केंद्रीय वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण, वाणिज्य और उद्योग मंत्री, पीयूष गोयल और आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष (EAC-PM) बिबेक देबरॉय के बीच इस बारे में पहले ही उच्चतम स्तर पर चर्चा शुरू हो चुकी है. इस 20 जुलाई, 2020 को इनकी मुलाकात हुई.
FTA रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता क्यों है?
विदेश मंत्री एस. जयशंकर के इस बयान के बाद कि, FTA ने क्षमता निर्माण में भारत की बहुत मदद नहीं की है, FTA रणनीतियों में सुधार करने के निर्णय पर बैठक में विचार किया गया.
चूंकि यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया के साथ FTA के संबंध में अधिक जोर देने की उम्मीद है और क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम उन देशों में शामिल हैं, जिनके साथ भारत अधिक आक्रामक रूप से संलग्न होगा, इस बात को पहचानने की आवश्यकता है कि, किसी भी समझौते के लिए जल्दबाजी करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
पीयूष गोयल ने इससे पहले भी आसियान और जापान के साथ समझौतों पर काम करने का संकेत दिया था, क्योंकि शुल्क में भारी कमी के कारण निर्यात से आयात अधिक हुआ था.
भारत को सेवा के मोर्चे पर भी अधिक लाभ होने की उम्मीद थी, क्योंकि नर्सों और सॉफ्टवेयर पेशेवरों को सिंगापुर, जापान, मलेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे बाजारों में आसानी से अपनी सेवाएं प्रदान करने के अवसर मिलते हैं. लेकिन हाल ही में, जब सिंगापुर ताजा वीजा देने में आनाकानी कर रहा है, घरेलू मुद्दों के कारण, जापान ने भाषा कौशल की कमी को इंगित करते हुए भारतीय नर्सों को अपने यहां सेवा प्रदान करने से इनकार कर दिया है.
आसियान देशों में चीनी कंपनियों की मौजूदगी ने ऐसे मामलों को और अधिक जटिल बना दिया गया है, जिनमें भारत में माल की आवाजाही के लिए कम टैरिफ के लाभों का उपयोग होता है. सरकार को यह भी संदेह है कि कुछ चीनी वस्तुओं को FTA वाले कुछ देशों में सिर्फ रि-पैकेज किया जाता है और बिना किसी अतिरिक्त मूल्य के वह सारा माल और सामान भारत में भेज दिया जाता है.
FTA के कारण राजस्व की हानि
वित्त मंत्रालय भी विभिन्न व्यापार समझौतों के कारण राजस्व के नुकसान से चिंतित है. इसके अलावा, इन देशों ने भारत की चिंताओं को दूर करने के लिए अनिच्छा भी जताई है जिस कारण, भारत सरकार ऐसे सुझावों के साथ की गई संधियों की समीक्षा करने के लिए प्रेरित हुई है, जिनमें से कुछ को समाप्त किया जाना चाहिए.
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि भारत अपने रुख को सख्त करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि इसकी कंपनियां भी व्यापार सौदों में बराबर की भागीदार हों.
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