चीन ने 23 जून 2020 को अपने बाइडू नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (बीडीएस) के लिए अंतिम उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया. इसके साथ ही उसने अंतरिक्ष शक्ति बनने के लिए एक और बड़ा कदम उठाया है. ऐसे में चीन की अपनी नेविगशन प्रणाली होने से उसकी अमेरिकी जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) पर निर्भरता कम हो जाएगी.
दक्षिण-पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत स्थित जिचांग उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से 23 जून 2020 को इस उपग्रह को प्रक्षेपित किया गया. यह नेविगेशन के अरबों डॉलर के आकर्षक बाजार में हिस्सेदारी को लेकर चीन का एक बड़ा कदम है. दक्षिण-पश्चिमी सिचुआन प्रांत से लॉन्च की गई सेटेलाइट के फुटेज को सरकारी प्रसारणकर्ता सीसीटीवी ने प्रसारित किया.
16 जून को लॉन्च करना था सैटेलाइट
इस सैटेलाइट को पहले 16 जून को लॉन्च किया जाना था, लेकिन तकनीकी दिक्कतों के चलते आखिरी समय इसके प्रक्षेपण को रद कर दिया गया. चीनी भाषा में बाइडू का मतलब ''सप्तर्षि'' है और यह उपग्रह बाइडू परिवार का 55वां और अंतिम उपग्रह था.
उद्देश्य
बाइडू को लॉन्च करने का उद्देश्य अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस), रूस के ग्लोनास और यूरोपीय संघ के गैलीलियो को टक्कर देना है. भारत भी इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के नाम से अपना नेविगेशन सिस्टम तैयार कर रहा है. इसका कोड नेम-एलएवीआइसी रखा गया है.
पहली बाइडू सैटेलाइट
पहली बाइडू सैटेलाइट ने साल 2000 में कक्षा में प्रवेश किया था और दिसंबर 2012 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र, चीन के घरेलू यूजर को पोजिशनिंग, नेविगेशन, टाइमिंग और मैसेजिंग सर्विस प्रदान कर रहा है. बीडीएस प्रणाली ने साल 2018 के अंत में वैश्विक सेवाएं प्रदान करना शुरू कर दिया है.
उपग्रह डेटा का उपयोग
चीन ने साल 1990 के दशक की शुरुआत में कारों, मछली पकड़ने की नौकाओं और सैन्य टैंकरों को देश के अपने उपग्रहों के डेटा का उपयोग करके नेविगेट करने में मदद करने हेतु अपने वैश्विक नेविगेशन प्रणाली को बनाने का काम शुरू किया था. अब इस सेवा का उपयोग लाखों मोबाइल फोन पर नजदीकी रेस्तरां, पेट्रोल स्टेशन या सिनेमाघरों की तलाश करने से लेकर टैक्सियों और मानवरहित ड्रोन उड़ाने हेतु किया जा सकता है.
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