उच्चतम न्यायालय ने 13 मई 2016 को मानहानि से संबंधित दंड कानूनों की संवैधानिक वैधता की पुष्टि की है. इस मामले में फैसला न्यायमूर्ति दीपक मिश्र और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की पीठ ने दिया.
न्यायालय के आदेश-
न्यायालय के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में प्रतिष्ठा का अधिकार भी शामिल है.
इस मामले में न्यायालय चौबीस याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है.
याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि दंडात्मक अनुमति अधिनियम के प्रावधानों से संविधान से मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है.
केन्द्र और कुछ राज्य सरकारों ने यह कहते हुए इन याचिकाओं का विरोध किया कि इनकी दलीलें मान लेने से समाज में अराजकता की स्थिति पैदा होगी.
क्योंकि लोग बेखौफ दूसरों की प्रतिष्ठा धूमिल करेंगे.
न्यायालय ने देश भर के जिला मजिस्ट्रेटों को मानहानि की निजी शिकायतों में सम्मन जारी करते समय अत्यधिक सतर्कता बरतने का निर्देश दिया.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इन मामलों में अंतरिम संरक्षण जारी रहेगा और सुनवाई अदालतों में दण्डात्मक मुकदमों पर रोक रहेगी.
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