पृथ्वी को यह अधिक ऑक्सीजन कैसे मिली, इसके लिए अब वैज्ञानिक एक नया विचार लेकर आए हैं. नया सिद्धांत यह है कि, ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि, अब पृथ्वी ग्रह की गति कुछ धीमी हो गई है और इसके दिन कुछ लंबे हो गए हैं.
ऐसा एक अध्ययन, जो 02 अगस्त, 2021 को प्रकाशित हुआ था, में इस सिद्धांत का प्रस्ताव पेश किया गया है और इस अध्ययन में यह परीक्षण किया गया कि, लंबे समय तक, निरंतर बने रहने वाले दिन के उजाले ने एक अजीब किस्म के बैक्टीरिया को बहुत सारी ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए सक्षम बनाया, जिससे पृथ्वी पर अधिकांश जीवन संभव हो सका.
पृथ्वी पर ऑक्सीजन: किस कारण से यह नया सिद्धांत प्रतिपादित हुआ?
विज्ञान में सबसे महान ज्ञात रहस्यों में से एक यह है कि, कैसे पृथ्वी ग्रह एक न्यूनतम ऑक्सीजन वाले ग्रह से अब हमारे लिए सांस लेने योग्य हवा वाले एक ग्रह में बदल गया है.
इस क्षेत्र के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने लंबे समय से साइनोबैक्टीरिया नामक जीवाणुओं का पता लगाया था, जो ऑक्सीजन के विकास में शामिल थे, लेकिन ये वैज्ञानिक और विशेषज्ञ यह पता लगाने और यह बताने में सक्षम नहीं थे कि, यह महान ऑक्सीजनीकरण की घटना कब शुरू हुई.
क्या कहता है यह नया सिद्धांत?
सोमवार के नेचर जियोसाइंस में एक अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने यह सिद्ध किया है कि, पृथ्वी का धीमा घूमना, जिसने धीरे-धीरे दिनों की अवधि को 06 घंटे से वर्तमान 24 घंटे तक बढ़ा दिया, जो इस ग्रह को अधिक सांस लेने लायक बनाने के लिए, इन जीवाणुओं या साइनोबैक्टीरिया के लिए महत्वपूर्ण था.
लगभग 2.4 अरब साल पहले पृथ्वी के वायुमंडल में इतनी कम ऑक्सीजन थी कि, जिसे शायद ही मापा जा सकता था और इसलिए, कोई भी पौधा या जानवर, जैसा कि अब ज्ञात है, हमारे ग्रह पृथ्वी पर जीवित नहीं रह सकता था. इसके बजाय तब, कार्बन डाइऑक्साइड में बहुत सारे जीवाणुओं ने सांस ली और साइनोबैक्टीरिया के मामले में, प्रकाश संश्लेषण के शुरुआती रूपों में इसने ऑक्सीजन का उत्पादन किया.
किस वजह से इस बैक्टीरिया ने ऑक्सीजन का उत्पादन शुरू किया?
इसका उत्तर देने के लिए, मिशिगन विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञानी ब्रायन अर्बिक आगे आये हैं क्योंकि, वे पृथ्वी पर ज्वारीय बलों का अध्ययन करते हैं और यह बताते हैं कि, इन ज्वारीय बलों ने पृथ्वी ग्रह के घूर्णन को कैसे धीमा कर दिया है.
जर्मनी और मिशिगन के शोधकर्ताओं ने अपने सिद्धांत का एक ऐसे बैक्टीरिया के साथ परीक्षण किया जो लगभग 2.4 अरब साल पहले हमारी पृथ्वी पर पाया जाता था. वैज्ञानिकों ने हूरों झील में लगभग 79 फीट गहरे सिंकहोल की एक अजीब दुनिया में रहने वाले साइनोबैक्टीरिया के बैंगनी और सफेद मैट (सतह) का इस्तेमाल किया.
जुडिथ क्लैट और उनके सहयोगियों ने एक ऐसे बैक्टीरिया को, जिसमें सड़े हुए अंडे की तरह गंध आती है, अलग-अलग मात्रा में 26 घंटे तक प्रकाश में रखा. तब उन्होंने यह पाया कि, निरंतर अधिक प्रकाश में रहने के कारण इन जीवाणुओं ने अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन किया.
निष्कर्ष
इस अध्ययन के लेखकों और बाहरी वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि, यह पृथ्वी पर ऑक्सीजन की वृद्धि के लिए सिर्फ एक संभव, लेकिन प्रशंसनीय व्याख्या है.
कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में बायो-जियो-केमिस्ट्री के प्रोफेसर टिम लियोन ने यह कहा है कि, वर्तमान विचार इसलिए इतना प्रभावशाली है क्योंकि, इसमें बैक्टीरिया या दुनिया के महासागरों में किसी भी प्रकार के बड़े जैविक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है.
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