केंद्र सरकार ने 13 प्रमुख नदियों को ‘वानिकी हस्तक्षेप’ (वन लगाकर) से फिर से जीवंत करने की योजना बनाई है. इसका उद्देश्य संचयी वन क्षेत्र को 7,400 वर्ग किलोमीटर से अधिक बढ़ाना है. केंद्र सरकार ने गंगा को स्वच्छ बनाने के अभियान को मिली शुरुआती सफलता के बाद अब यमुना, नर्मदा, झेलम और महानदी सहित देश की 13 प्रमुख नदियों के संरक्षण का भी फैसला लिया है.
आपको बता दें कि इसका जिम्मा फिलहाल वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने संभाला है. इसने 24 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर बहने वाली इन नदियों के वानिकी के जरिये संरक्षण की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की है. इस पर आने वाले सालों में लगभग 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव है.
कार्बन उत्सर्जन नेट जीरो करने का लक्ष्य
इस पूरी योजना को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों पर होगी जबकि केंद्र सरकार इस पर निगरानी रखेगा. खास बात यह है कि इस पूरी योजना को भविष्य की चुनौतियों से निपटने सहित काप-26 में जताई गई प्रतिबद्धता को पूरा करने से जोड़कर भी देखा जा रहा है. इसके अंतर्गत साल 2030 तक भारत ने अपने अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक अरब टन कम करने सहित साल 2070 तक कार्बन उत्सर्जन नेट जीरो करने का लक्ष्य रखा है.
13 नदियों के कायाकल्प की योजना
केंद्र सरकार ने जिन नदियों को इस योजना में शामिल करने का प्रस्ताव किया है, उनमें झेलम, चिनाब, रावी, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, ब्यास, सतलुज, यमुना, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी नदियां शामिल हैं.
कार्बन डाईआक्साइड कम करने में सहायता
इस नदी कायाकल्प से अपेक्षित गैर-लकड़ी एवं अन्य वन उपज से 449.01 करोड़ रुपये आमदनी होने की संभावना है. प्रस्तावित हस्तक्षेप से 10 साल पुराने वृक्षारोपण से 50.21 मिलियन टन कार्बन डाईआक्साइड तथा 20 साल पुराने वृक्षारोपण से 74.76 मिलियन टन कार्बन डाईआक्साइड कम करने में सहायता मिलेगी.
संरक्षण का अलग-अलग प्लान
प्रत्येक नदी के लिए उसके क्षेत्र के हिसाब से संरक्षण का अलग-अलग प्लान बनाया गया है. इनमें पौधारोपण की अलग-अलग विधियां प्रस्तावित की गई हैं. 13 नदियों के लिए 667 उपचार और पौधारोपण मॉडल प्रस्तावित किए गए हैं.
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