केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री श्री कृष्ण पाल गुर्जर ने 09 नवम्बर 2018 को नै दिल्ली में दिव्यांग युवाओं के लिए वैश्विक आईटी प्रतिस्पर्धा 2018 का उद्घाटन किया. 9-11 नवंबर, 2018 तक चलने वाले इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) ने रिहैबिलिटेशन इंटरनेशनल (आरआई), कोरिया और उनके सहयोगी एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स के सहयोग से किया है.
इस कार्यक्रम का उद्देश्य दिव्यांग युवाओं में आईटी कौशल का विकास करना तथा दिव्यांगजनों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए सूचना और कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के प्रति जागरूकता बढ़ाना है.
लाभ |
दिव्यांग युवाओं के लिए वैश्विक आईटी प्रतिस्पर्धा एक क्षमता निर्माण परियोजना है, जो दिव्यांगजनों को आईसीटी की सहायता से उनकी कमियों पर विजय पाने में मदद करता है. यह डिजिटल अंतर को समाप्त करेगा और समाज में दिव्यांगजनों की सहभागिता को बढ़ाएगा. |
प्रमुख बिंदु
दृष्टि दिव्यांगता, श्रवण दिव्यांगता, लोको मोटर दिव्यांगता और विकास संबंधी विकार (बौद्धिक अक्षमता/एमआर) वाले 100 से अधिक युवा इस कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं. दरअसल, 18 देशों - इंडोनेशिया, चीन, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, मंगोलिया, कम्बोडिया, लाओस, फिलीपींस, कोरिया, कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, भारत और ब्रिटेन के युवा इस कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं.
भारत ने 12 दिव्यांग युवाओं को इस प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिए नामित किया है. इन युवाओं का चयन राष्ट्रीय आईटी प्रतिस्पर्धा के आधार पर किया गया है, जिसे राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरूक्षेत्र ने संचालित किया था. भारत 2013 से इस प्रतिस्पर्धा में भाग ले रहा है और पुरस्कार जीतता रहा है। पिछले वर्ष यह कार्यक्रम वियतनाम में आयोजित हुआ था.
आवश्यकता क्यों?
सूचना तकनीकी, दिव्यांग लोगों की ज़िंदगियों और उनसे संबंधित देशों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. विश्व में विकलांगता से प्रभावित करीब 1 बिलियन लोग है जो वैश्विक जनसंख्या का 15% है. इनका 80% भाग विकासशील देशों में निवास करता है जिनका आईसीटी इंडेक्स कम होता है. सूचना विभाजन में वृद्धि और विकलांगता के कारण ऐसे लोग समाज से अलग-थलग पड़ जाते हैं और असमानता तथा गरीबी का शिकार बनते हैं.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation