भारत सरकार ने रखा वन संरक्षण अधिनियम में बदलाव का प्रस्ताव

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सभी राज्यों को प्रस्तावित संशोधनों की एक प्रति 02 अक्टूबर को भेजी है, जिसमें 15 दिनों के भीतर उनकी आपत्तियां और सुझाव मांगे गए हैं. सूत्रों ने यह कहा है कि, इन सुझावों पर विचार करने के बाद एक मसौदा प्रस्ताव तैयार किया जाएगा और संसद के समक्ष रखा जाएगा.

Oct 6, 2021, 13:46 IST
Indian Govt proposes changes to Forest Conservation Act
Indian Govt proposes changes to Forest Conservation Act

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सभी राज्यों को प्रस्तावित संशोधनों की एक प्रति 02 अक्टूबर को भेजी है, जिसमें 15 दिनों के भीतर उनकी आपत्तियां और सुझाव मांगे गए हैं. सूत्रों ने यह कहा है कि, इन सुझावों पर विचार करने के बाद एक मसौदा प्रस्ताव तैयार किया जाएगा और संसद के समक्ष रखा जाएगा.

इस प्रस्ताव के अनुसार, राज्य सरकारों द्वारा वर्ष, 1996 तक सूचीबद्ध माने गए वनों को वन भूमि माना जाता रहेगा.

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन का प्रस्ताव: महत्त्वपूर्ण जानकारी

केंद्र ने वन कानूनों को उदार बनाने के लिए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन का प्रस्ताव दिया है. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC), भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन में भी अपराधों के लिए दंडात्मक प्रावधानों को बढ़ाकर और "प्राचीन वनों" को बनाए रखते हुए, वन संरक्षण के लिए कड़े मानदंड प्रस्तुत किये गये है, जहां किसी भी परिस्थिति में किसी भी गैर-वानिकी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत के सभी राज्यों को प्रस्तावित संशोधनों की एक प्रति 02 अक्टूबर को भेजी है, जिसमें 15 दिनों के भीतर उनकी आपत्तियां और सुझाव मांगे गए हैं. सूत्रों ने यह कहा है कि, इन सुझावों पर विचार करने के बाद एक मसौदा प्रस्ताव तैयार किया जाएगा और संसद के समक्ष रखा जाएगा.

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन का प्रस्ताव: प्रमुख बिंदु

इस प्रस्ताव के अनुसार, राज्य सरकारों द्वारा वर्ष, 1996 तक सूचीबद्ध माने गए वनों को वन भूमि माना जाता रहेगा. वर्ष, 1980 से पहले रेलवे और सड़क मंत्रालयों द्वारा अधिग्रहित की गई ऐसी भूमि, जिस पर अब जंगल आ गए हैं, उसे अब वन नहीं माना जाएगा.

वन (संरक्षण) अधिनियम (FCA), 1980 में यह घोषणा की गई थी कि, टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ और अन्य में वर्ष, 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पहले, वन भूमि केवल वही थी जो वर्ष, 1927 के वन अधिनियम द्वारा परिभाषित की गई थी. लेकिन इस फैसले में अदालत ने उन सभी क्षेत्रों को शामिल किया जो किसी भी सरकारी रिकॉर्ड में 'वन' के रूप में दर्ज हैं, भले ही इन क्षेत्रों का स्वामित्व, मान्यता और वर्गीकरण कुछ भी हो. हालांकि, उक्त मंत्रालय के कॉन्सेप्ट नोट में यह उल्लिखित किया गया है कि, "ऐसी भूमि की पहचान व्यक्तिपरक और कुछ हद तक मनमानी है ... किसी भी निजी क्षेत्र को जंगल मानने से, किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी गैर-वानिकी गतिविधि के लिए अपनी जमीन का उपयोग करने का अधिकार प्रतिबंधित हो जाएगा."

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन का प्रस्ताव: महत्त्व

पर्यावरण सचिव आरपी गुप्ता ने इस बारे में यह कहा है कि, “यह रेलवे और सड़कों के मामले में विशेष रूप से समस्याग्रस्त है. इन मंत्रालयों के पास जमीन है लेकिन वे MoEFCC की अनुमति के बिना इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं और इन अनुमतियों में 2-4 साल के बीच का समय लग सकता है, जिस कारण बहुत देरी हो सकती है". उन्होंने आगे यह कहा कि, सड़कों के किनारे लगाए गए वृक्षारोपण भी डीम्ड वनों की श्रेणी में आते हैं, इस प्रकार "पेट्रोल पंप जैसी सड़क सुविधाओं तक पहुंच बंद हो जाती है ... इससे सड़क बेकार हो जाती है. इसलिए, हमने नए संशोधन में इस प्रावधान को हटा दिया है."

इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि, वृक्षारोपण और वनीकरण को प्रोत्साहित करके यह संशोधन "लकड़ी और लकड़ी के डेरिवेटिव के आयात के लिए विदेशी मुद्रा से प्रवाह को लगभग 45,000 करोड़ रुपये तक कम कर देगा".

पर्यावरण वकील ऋत्विक दत्ता ने यह कहा कि, "मंत्रालय ने प्रस्ताव स्तर पर परामर्श के लिए बुलाया है - जो शायद ही कभी किया जाता है ... कड़े दंड प्रावधानों को लाकर इस अधिनियम की नियामक प्रकृति को निषेधात्मक में बदलने का प्रावधान भी स्वागत योग्य है ... लेकिन मंत्रालय वन भूमि का विचलन की सुविधा दे रहा है.”

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