लोकसभा द्वारा एडमिरल्टी (न्यायिक क्षेत्र एवं समुद्री दावा निपटान) विधेयक-2016 पारित किया गया. इस विधेयक में नौसेनिक जलीय क्षेत्र में होने वाली दुर्घटनाओं तथा इस जलीय क्षेत्र पर वाणिज्य संबंधी अनुबंध शामिल हैं.
यह विधेयक औपनिवेशिक काल के एडमिरल्टी विधेयक 1861 तथा एडमिरल्टी विधेयक 1899 जैसे कानूनों को निरस्त करता है.
इस विधेयक का उद्देश्य न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से जुड़े मुद्दों तथा कानूनों को समेकित करना है. साथ ही समुद्री दावों पर नौसेना की कार्यवाही जैसे जहाजों की गिरफ्तारी करने का अधिकार भी इसमें शामिल है. इस विधेयक द्वारा प्रशासन में बाधा डालने वाले नियमों को भी निरस्त करने में सहयोग प्राप्त हुआ है.
वर्तमान भारत में एडमिरल्टी का अधिकार कोलकाता उच्च न्यायालय, मद्रास उच्च न्यायालय तथा मुंबई उच्च न्यायालय को है. इस विधेयक के पारित होने से समुद्री दावों से सम्बंधित अधिकार उस राज्य के उच्च न्यायालय को मिलेगा. इससे केंद्र सरकार उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार का विस्तार करने में भी सक्षम होगी. एडमिरल्टी का अर्थ समुद्र मार्ग के परिवहन के दौरान जुड़े दावों में उच्च न्यायालय की शक्तियों से है.
एडमिरल्टी विधेयक, 2016 की मुख्य विशेषताएं
• एडमिरल्टी विधेयक 2016 प्रस्ताव समुद्री कानूनी क्षमताओं द्वारा की जा रही मांग का समर्थन करेगा.
• विधेयक भारत के तटवर्ती राज्यों के उच्च न्यायालयों को एडमिरल्टी क्षेत्राधिकार प्रदान करता है.
• क्षेत्राधिकार का विस्तार समुद्री सीमा तक है.
• केंद्र सरकार की अधिसूचना के माध्यम से क्षेत्राधिकार में विस्तार भी किया जा सकता है.
• यह विस्तार किसी विशेष आर्थिक क्षेत्र या भारत के किसी अन्य समुद्री क्षेत्र या भारत की प्रादेशिक सीमा के दायरे में किसी द्वीप तक हो सकता है.
• एडमिरल्टी विधेयक सभी समुद्री जहाजों पर लागू होगा. जहाज के मालिक का आवास/ निवास कहीं भी हो.
• अंतर्देशीय निर्माणाधीन जहाज इसके दायरे में नहीं ले गए हैं. आवश्यकता होने पर केंद्र सरकार अधिसूचना जारी करके इनको भी इसके दायरे में ला सकती है.
• विधेयक युद्धपोत एवं नौसेना के बड़े के सहायक जहाज और गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग किए जाने वाले जहाजों पर लागू नहीं है.
• समुद्री दावों के मामलों में सुरक्षा के दृष्टिगत जहाज को निश्चित परिस्थितियों में जब्त किया जा सकता है.
• किसी जहाज पर चुनिंदा समुद्री दावों के संबंध में दायित्य उसके नए मालिक को निर्धारित समय सीमा के भीतर मैरिटाइम लिएन्स के तहत हस्तांतरित किया जाएगा.
• जिन पहलुओं हेतु विधेयक में प्रावधान नहीं किए गए हैं उन पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 लागू की जाएगी.
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