भारत में मेंढक की नई प्रजाति खोजी गई

Mar 14, 2019, 17:35 IST

इस मेंढक के पार्श्व भाग में आंखों की संरचना जैसे काले धब्बे होते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये धब्बे शिकारियों के खिलाफ रक्षात्मक भूमिका निभाते हैं.

New frog species discovered in biodiversity hotspot in India
New frog species discovered in biodiversity hotspot in India

भारतीय शोधकर्ताओं की टीम द्वारा हाल ही में दक्षिण-पश्चिम घाट पर मेंढक की नई प्रजाति की खोज की गई है. इस संबंध में एक अध्ययन रिपोर्ट PeerJ नामक साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है. खोजकर्ताओं द्वारा पश्चिमी घाट में रेंगने वाले और उभयचर जीवों की विविधता को उजागर करने के लिए एक विस्तृत सर्वेक्षण किया गया जिसमें मेंढक की इस प्रजाति के नमूने पाए गए हैं.

इस शोध को इंडियन साइंस इंस्टिट्यूट, बेंगलुरु, फ्लोरिडा नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, पुणे तथा जॉर्ज वॉशिंगटन विश्वविद्यालय, अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया. इस सर्वेक्षण में पश्चिम घाट के विभिन्न ऊंचाई वाले स्थानों, अलग-अलग वर्षा क्षेत्रों, विविध प्रकार के आवासों में रहने वाले सरीसृपों और अन्य रेंगने वाले जीवों को शामिल किया गया था.

 

एस्ट्रोबाट्राचस कुरिचियाना: मेंढक की नई प्रजाति

एस्ट्रोबाट्राचस कुरिचियाना प्रजाति के इस मेंढक की पीठ पर काले धब्बों जैसी संरचना होती है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि खतरे की स्थिति में नर मेंढक अपनी पीठ को उठाकर इन धब्बों को प्रदर्शित करते हैं. यह धब्बे इस प्रजाति के मेंढक के लिए रक्षात्मक भूमिका निभाते हैं. यह भी पाया गया कि यह मेंढक कीट-पतंगों जैसी आवाज़ निकालकर मादा मेंढक को पुकारते हैं. उथले पानी के पोखर के आसपास घास की पत्तियों के नीचे की आमतौर पर नर मेंढक को देखा जाता है. शोधकर्ताओं का मानना है कि ज्यादातर समय यह मेंढक छिपे रहते हैं और केवल प्रजनन केलिए ही बाहर निकलते हैं, इसलिए इन्हें पहले बहुत कम देखा गया है.

वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध से पता चला है कि इस नई प्रजाति के पूर्वज जैविक विकास के क्रम में लगभग 6-7 करोड़ साल पूर्व अलग हो गए थे. यह प्रजाति भारत में खोजी गई है, लेकिन इसके रूप एवं आकृति (विशेषकर त्रिकोणीय अंगुली और पैर की अंगुली की युक्तियां) दक्षिण अमेरिकी और अफ्रीका के मेंढकों जैसी दिखती हैं.



शोध के प्रमुख बिंदु

•    इस प्रजाति को एस्ट्रोबाट्राचस कुरिचियाना नाम दिया गया है और इसे नए एस्ट्रोबैट्राकिन परिवार के तहत रखा गया है.

•    इसकी करीबी प्रजातियां लगभग दो हजार किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व एशिया के भारत-बर्मा और सुंडालैंड के वैश्विक जैव विविधता क्षेत्रों में पाई जाती हैं.

•    वैज्ञानिकों के अनुसार, मेंढक की यह प्रजाति अपने दक्षिण-पूर्व एशियाई संबंधियों से लगभग चार करोड़ वर्ष पूर्व अलग हो गई थी.

•    प्रायद्वीपीय भारत के प्रमुख जैव विविधता केंद्र में स्थित होने के बावजूद इस प्रजाति की ओर पहले किसी का ध्यान नहीं गया था। स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में उभयचरों का दस्तावेजीकरण अभी पूरा नहीं हुआ है। इस मेंढक को अब तक शायद इसलिए नहीं देखा जा सका क्योंकि यह वर्ष के अधिकतर समय गुप्त जीवनशैली जीता है और प्रजनन के लिए बेहद कम समय के लिए बाहर निकलता है.

•    पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले निक्टीबैट्राकिने और श्रीलंका के लैंकैनेक्टिने मेंढक इस नई प्रजाति के करीबी संबंधियों में शामिल हैं. निक्टीबैट्राकिने प्रजाति का संबंध निक्टीबैट्राकस वंश से है, जबकि लैंकैनेस्टिने मेंढक लैंकैनेक्टेस वंश से संबंधित है.

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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