कंगला टोंगबी की ऐतिहासिक लड़ाई का प्लेटिनम जुबली समारोह मनाया गया

Apr 8, 2019, 17:14 IST

इस लड़ाई में 221 अग्रिम आयुध डिपो के आयुध कार्मिकों के सर्वोच्‍च बलिदान को सम्‍मान देने हेतु इम्फाल के निकट कंगला टोंगबी वॉर मेमोरियल पर सेना आयुध कोर द्वारा प्लेटिनम जयंती समारोह मनाया गया.

Platinum Jubilee Commemoration of Battle of Kangla Tongbi
Platinum Jubilee Commemoration of Battle of Kangla Tongbi

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मणिपुर स्थित कंगला टोंगबी में हुए भीषण युद्ध की याद में तथा सैनिकों के सम्मान में प्रत्येक वर्ष 7 अप्रैल को कंगला टोंगबी यादगार समारोह मनाया जाता है. एडवांस ऑर्डिनेन्‍स डिपो (एओडी) के 221 आयुध कर्मियों द्वारा 6/7 अप्रैल 1944 की रात को लड़े गए कंगला टोंगबी के युद्ध को द्वितीय विश्व युद्ध के भयंकर युद्धों में से एक माना जाता है.

इस लड़ाई में 221 अग्रिम आयुध डिपो के आयुध कार्मिकों के सर्वोच्‍च बलिदान को सम्‍मान देने हेतु इम्फाल के निकट कंगला टोंगबी वॉर मेमोरियल पर सेना आयुध कोर द्वारा 07 अप्रैल 2019 को प्लेटिनम जयंती के तौर पर मनाया गया.

कंगला टोंगबी वॉर मेमोरियल

कंगला टोंगबी वॉर मेमोरियल, 221 एओडी, 19 के आयुध कर्मियों की कर्तव्य के प्रति अगाध श्रद्धा का एक मौन प्रमाण होने के साथ-साथ उनके सर्वोच्च बलिदान का भी प्रमाण है. यह स्‍मारक विश्‍व को यह बताता है कि आयुध कर्मी पेशेवर कार्मिक होने के अलावा युद्ध के समय में भी एक कुशल सैनिक के रूप से किसी से पीछे नहीं हैं.

वीरता के इस कार्य के लिए, मेजर बॉयड को मिलिट्री क्रॉस (एमसी), कंडक्टर पक्केन को  मिलिट्री मेडल (एमएम) और हवलदार/क्लर्क स्टोर, बसंत सिंह को भारतीय विशिष्ट सेवा मेडल (आईडीएसएम) से सम्मानित किया गया.

 

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कंगला टोंगबी की ऐतिहासिक लड़ाई

  • 6/7 अप्रैल 1944 की रात को जापानी बलों ने तीन ओर से आक्रामक आक्रमण करके इम्फाल और इसके आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा करने की एक योजना बनाई थी.
  • इम्फाल तक अपनी संचार लाइन का विस्तार करने के प्रयास के तहत, 33वीं जापानी डिवीजन ने म्यांमार  स्थित 17वीं  भारतीय डिवीजन के मार्ग को अवरुद्ध करते हुए मुख्य कोहिमा-मणिपुर राजमार्ग पर अपना कब्‍जा जमा लिया और कंगला टोंगबी की ओर आगे बढ़ना शुरू कर दिया.
  • कंगला टोंगबी में तैनात 221 एओडी की एक छोटी लेकिन दृढ़ टुकड़ी ने अग्रिम जापानी बलों को रोकने के लिए उनके खिलाफ कड़ा प्रतिरोध किया.
  • तकनीकी दृष्टि से 221 एओडी की स्थिति बिल्कुल भी मजबूत नहीं थी. जब यह टुकडी हर तरफ से दुश्मन से घिर गई तो इसने अपनी आत्‍मरक्षा के लिए स्‍वयं की युद्ध क्षमता पर भरोसा किया.
  • डिपो की रक्षा के लिए एक आत्मघाती दस्ता तैयार किया गया, जिसमें मेजर बॉयड, हवलदार/क्लर्क स्टोर के तौर पर कार्य करने वाले बसंत सिंह, कंडक्टर पक्केन के अलावा डिपो के अन्य कर्मी भी शामिल थे.
  • 06 अप्रैल 1944 को डिपो से 4,000 टन गोला-बारूद, आयुध और अन्य युद्ध के सामानों को हटाने के आदेश दिए गये.
  • 6/7 अप्रैल 1944 की रात को, जापानियों ने डिपो पर भारी हमला किया, लेकिन डिपो के निचले भाग की ओर एक गहरे नाले को एक सुरक्षा कवर के रूप में इस्तेमाल किया गया.
  • इस नाले का बंकर के तौर पर उपयोग करते हुए यहां से दुश्‍मन पर भारी गोलीबारी की गई जिससे दुश्‍मन को अपने कदम वापस खींचने पर मजबूर होना पड़ा.
  • इस हमले में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाली ब्रेन गन को हवलदार और क्‍लर्क स्टोर, बसंत सिंह ने बनाया था.
Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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