राजस्थान सरकार ने राज्य में लोकसेवकों, जिला जजों और मजिस्ट्रेट आदि के लिए विशेष अध्यादेश पारित किया है. इस अध्यादेश के अनुसार ड्यूटी पर तैनात किसी वर्तमान या पूर्व लोकसेवक, जिला जज या मजिस्ट्रेट की कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट में परिवाद दायर किया जाता है तो कोर्ट उस पर तब तक जांच के आदेश नहीं दे सकता, जब तक कि सरकार की स्वीकृति न मिल जाए.
मुख्य बिंदु
• राजस्थान सरकार ने हाल में एक अध्यादेश जारी किया जिसमें भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन किए हैं, जो राजस्थान में ही लागू होंगे.
• इसके अनुसार कार्यरत लोकसेवक, जिला न्यायाधीश आदि के खिलाफ सरकारी की अनुमति के बिना प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती.
• परिवाद पर जांच की स्वीकृति के लिए 180 दिन की सीमा तय की गई है. इस अवधि में स्वीकृति प्राप्त नहीं होती है तो यह माना जाएगा कि सरकार ने स्वीकृति दे दी है.
• यह भी संशोधन किया गया है कि जब तक सरकार की ओर से स्वीकृति प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक जिस लोकसेवक के खिलाफ परिवाद है उसका नाम, पता, पहचान उजागर नहीं किया जायेगा.
• ऐसा किया जाता है तो दो साल तक की सजा हो सकती है.
• इसी तरह का अध्यादेश महाराष्ट्र सरकार भी पारित कर चुकी है, लेकिन उसमें समय सीमा सिर्फ 90 दिन थी और प्रकाशित करने पर रोक या सजा का प्रावधान नहीं था.
पृष्ठभूमि
अब तक ऐसे मामलों में यह होता था कि कोई भी व्यक्ति किसी लोकसेवक के खिलाफ कोर्ट में परिवाद दे देता था तो जज उस पर एफआईआर दर्ज कर जांच करने के आदेश दे सकते थे. इसके लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं होती थी और ऐसे मामले मीडिया में प्रकाशित भी किए जा सकते थे, इस पर किसी तरह की पाबंदी नहीं थी. हालांकि अब ऐसा नहीं हो सकता.
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