पिछले 50 साल में भारत में समुद्र का स्तर 8.5 सेमी बढ़ा: पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री

Nov 20, 2019, 10:24 IST

उपग्रह तथा अन्य माध्यमों से मिले आंकड़ों के अनुसार, उत्तरी हिंद महासागर में जल स्तर बढ़ा है. साल 2003 से साल 2013 के दशक के दौरान इस महासागर में जल स्तर में 6.1 मिमी सालाना की वृद्धि हुई है.

Indian coast
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पिछले पांच दशकों में भारतीय तट पर समुद्र के जल स्तर में 8.5 सेमी की बढ़ोतरी हुई है. यह जानकारी केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को दी. यह माना जाता है कि भारतीय तट पर समुद्र का स्तर हर साल औसतन 1.70 मिमी बढ़ता है. इस प्रकार, पिछले 50 वर्षों में, भारतीय तट पर समुद्र का स्तर 8.5 सेमी बढ़ गया है.

बाबुल सुप्रियो केंद्रीय मंत्रिपरिषद में आसनसोल से सांसद और पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उपग्रह तथा अन्य माध्यमों से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तरी हिंद महासागर में जल स्तर बढा है. इस महासागर में साल 2003 से साल 2013 के दशक के दौरान जल स्तर में 6.1 मिमी सालाना की वृद्धि हुई है.

भारत में समुद्री जल स्तर में वृद्धि

समुद्री जल स्तर में वृद्धि से सुनामी, तूफान, तटीय बाढ़ तथा तट क्षेत्र के कटाव के दौरान निचले इलाकों के जलमग्न होने का खतरा बढ़ सकता है. समुद्री जल के स्तर में वृद्धि के कारण तटीय क्षेत्रों के मुद्दे का मूल्यांकन करने की तत्काल आवश्यकता है. बाबुल सुप्रियो ने राज्यसभा को सूचित किया कि डायमंड हार्बर क्षेत्र में बड़े भूमि उप-विभाजन के कारण जलमग्न होने का अधिक खतरा है. ऐसी ही स्थिति पोर्ट ब्लेयर, हल्दिया और कांडला बंदरगाहों में भी मौजूद है.

संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी पैनल रिपोर्ट

• जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी पैनल द्वारा जारी एक रिपोर्ट में समुद्र के जल स्तर के बढ़ने के जोखिमों का वर्णन किया गया है.

• रिपोर्ट बताती है कि अगर कार्बन उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाई गई तो 2100 तक वैश्विक समुद्री जल स्तर में इतनी बढ़ोतरी हो जाएगी कि मुंबई और कोलकाता सहित सैकड़ों शहर जलमग्न सकते हैं.

• साथ ही, समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण कहीं कहीं तो पूरे के पूरे देश ही जलमग्न हो सकते हैं.

• दीर्घकालिक आंकड़े उपलब्ध न होने के कारण से, जलवायु परिवर्तन के वजह से समुद्री जल स्तर में वृद्धि की निश्चित दर नहीं बताई जा सकती.

• भारत वैश्विक उत्सर्जन में केवल 6-7 प्रतिशत का योगदान देता है लेकिन भारत सबसे संवेदनशील या संवेदनशील देशों में से एक है.

यह भी पढ़ें:जलवायु परिवर्तन भारत में स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता: लैंसेट रिपोर्ट

निष्कर्ष

यह कहा जा सकता है कि हमें जलवायु परिवर्तन को एक सार्वभौमिक समस्या के रूप में चित्रित करना चाहिए. हमें अपने राष्ट्रीय और विदेश नीति के एजेंडे में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे को शीर्ष स्तर पर बनाए रखने की आवश्यकता है. भारत को जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम को एकल प्रौद्योगिकी परिवर्तन के रूप में नहीं देखना चाहिए. इसके बजाय, रोजगार, ऊर्जा और प्रदूषण जैसी चुनौतियों पर एक ही समय में विचार किया जाना चाहिए.

Vikash Tiwari is an content writer with 3+ years of experience in the Education industry. He is a Commerce graduate and currently writes for the Current Affairs section of jagranjosh.com. He can be reached at vikash.tiwari@jagrannewmedia.com
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