भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 17 सितम्बर 2018 को शेयरों को वापस खरीदने (बायबैक) के नियमों में संशोधन किया है. इसका उद्देश्य शेयर बायबैक के लिए सार्वजनिक रूप से कोई घोषणा करने की जरूरत पर और ज्यादा स्पष्टता लाना है.
सेबी के अनुसार क्रेडिट रेटिंग संस्थाएं पब्लिक या राइट्स इश्यू के जरिये ऑफर की गई सिक्युरिटीज की रेटिंग के अलावा और किसी भी तरह की गतिविधि में शामिल नहीं होंगी.
मुख्य तथ्य:
• सेबी के मुताबिक रेटिंग कंपनी को वित्तीय प्रतिभूतियों की रेटिंग तय करने और आर्थिक अथवा वित्तीय शोध एवं विश्लेषण कार्य अलावा दूसरे कामों को अलग कंपनी में बांटने का नियम लागू किया है. इसके लिए दो साल का समय दिया गया है.
• नए नियमों के तहत सेबी ने भगोड़े आर्थिक अपराधियों को किसी कंपनी में शेयर खरीदने या ओपन ऑफर में बोली लगाने से प्रतिबंधित कर दिया है.
• सेबी ने 11 सितंबर को जारी अधिसूचना में कहा कि भगोड़ा आर्थिक अपराधी किसी भी कंपनी के ओपन ऑफर के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बोली नहीं लगा सकता है. इसके साथ ही कंपनी अधिनियम 2013 के अनुरूप ‘मुक्त आरक्षित भंडार’ के बारे में स्पष्टीकरण को नये ढांचे में शामिल किया गया है.
• सेबी ने भाषा के सरलीकरण, अस्पष्टता खत्म करने और अप्रैल 2014 में अस्तित्व में आए नए कंपनी कानून के हिसाब से नए रेफरेंस जोड़ने के लिए शेयर बायबैक के नियमों में संशोधन किया है.
• कोई भी कंपनी जिसे शेयरों की वापस खरीद की अनुमति दी जाती है उसे दो कार्यदिवसों के भीतर इसकी सार्वजनिक घोषणा करनी होगी.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी): |
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) भारत में प्रतिभूति और वित्त का नियामक बोर्ड है. इसकी स्थापना सेबी अधिनियम 1992 के तहत 12 अप्रैल 1992 में हुई. सेबी का मुख्यालय मुंबई में हैं और क्रमश: नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में क्षेत्रीय कार्यालय हैं. सेबी के अस्तित्व में आने से पहले पूंजी निर्गम नियंत्रक नियामक प्राधिकरण था, जिसे पूंजी मुद्दे (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 के अंतर्गत अधिकार प्राप्त थे. सेबी का प्रमुख उद्देश्य भारतीय स्टाक निवेशकों के हितों का उत्तम संरक्षण प्रदान करना और प्रतिभूति बाजार के विकास तथा नियमन को प्रवर्तित करना है. |
बायबैक क्या है?
बायबैक एक निर्धारित समय में पूरी की जाने वाली एक प्रक्रिया है जिसमें निवेशकों के अतिरिक्त शेयरों को अपने सरप्लस का इस्तेमाल कर खुले बाजार से खरीदा जाता है. ये शेयर बाजार मूल्य या उससे ज्यादा कीमत पर खरीदे जाते हैं.
अधिसूचना के मुताबिक कंपनी निदेशक मंडल की बायबैक के लिये मंजूरी मिलने और इस पेशकश को स्वीकार करने वाले शेयरधारकों को भुगतान मिलने की तिथि को बायबैक अवधि के तौर पर परिभाषित किया गया है.
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