सुप्रीम कोर्ट में 10 जनवरी 2018 को पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस रंजन गोगाई ने कहा कि आज सिर्फ सुनवाई की तारीख तय की जाएगी.
इस बीच मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने पांच सदस्यीय बेंच में जस्टिस यूयू ललित के शामिल होने पर सवाल उठाए. राजीव धवन ने कहा कि वर्ष 1994 में जस्टिस ललित बाबरी मस्जिद विवाद में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पैरवी कर चुके हैं.
राजीव धवन के सवाल उठाने के बाद चीफ जस्टिस ने बाकी जजों के साथ मशविरा किया. इस पर जस्टिस यूयू ललित ने सुनवाई से अपने आप को अलग करने की बात कही.
अब जस्टिस ललित के खुद ही बेंच से हटने की बात कहने पर अयोध्या मसले पर नई संवैधानिक बेंच का गठन होगा. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी और नई बेंच का गठन किया जाएगा. उल्लेखनीय है कि यह पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अयोध्या मामले की सुनवाई को टाल दी है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली इस पांच सदस्यीय संविधान पीठ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़ शामिल थे.
इसस पहले 04 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अयोध्या जमीन विवाद मामले पर 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई नई पीठ करेगी.
अब पांच जजों के बेंच इस मामले की सुनवाई की करेगी. अब नई बेंच ही ये तय करेगी कि क्या ये मामला फास्टट्रैक में सुना जाना चाहिए या नहीं. सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ के सामने हुई.
इससे पहले 27 सितंबर 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2-1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गई अपनी टिप्पणी पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामले को पांच न्यायमूर्तियों की खंडपीठ के पास भेजने से इंकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 01 जनवरी 2019 को ही कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के मामले में न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अध्यादेश लाने के बारे में निर्णय का सवाल उठेगा.
क्या था मामला? |
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गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2010 में जो फैसला दिया था उसके खिलाफ हिंदू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इससे पहले मामले की सुनवाई चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर कर रहे थे.
अयोध्या विवाद कब क्या हुआ?
वर्ष | विवाद |
1949 | बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां देखी गई. सरकार ने परिसर को विवादित घोषित कर भीतर जाने वाले दरवाज़े को बंद किया. |
1950 | फ़ैज़ाबाद अदालत में याचिका दायर कर मस्जिद के अंदर पूजा करने की मांग की गयी. |
1959 | निर्मोही आखड़ा ने याचिका दायर कर मस्जिद पर नियंत्रण की मांग की. |
1961 | सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की याचिका, मस्जिद से मूर्तियों को हटाने की मांग की गयी. |
1984 | वीएचपी ने राम मंदिर हेतु जनसमर्थन जुटाने का अभियान शुरू किया. |
1986 | फ़ैज़ाबाद कोर्ट ने हिंदुओं की पूजा हेतु मस्जिद के द्वार खोलने के आदेश दिए. |
1989 | राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को विवादित स्थल के क़रीब पूजा की इजाज़त दी. |
1992 | कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिराया और अस्थाई मंदिर का निर्माण किया. |
2003 | इलाहाबाद हाइकोर्ट ने ASI को विवादित स्थल की खुदाई का आदेश दिया. |
2010 | इलाहाबाद हाइकोर्ट ने विवादित ज़मीन को तीन भाग में बांटने के आदेश दिए, अलग-अलग पक्षकारों ने हाइकोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
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2011 | सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के फ़ैसले को लागू करने पर रोक रहेगी. साथ ही विवादित स्थल पर सात जनवरी 1993 वाली यथास्थिति बहाल रहेगी. |
2016 | विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. |
2017 | सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा कि अयोध्या विवाद मामले को आपसी बातचीत से सुलझा लेना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के दिए गए इस्माइल फ़ारूक़ी फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच का गठन किया. |
2018 | सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से जुड़े वर्ष 1994 वाले फ़ैसले पर पुनर्विचार से इनकार किया. |
बता दें कि इससे पहले इस मामले की सुनवाई तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच कर रही थी. रिटायरमेंट से पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने इस मामले पर एक फैसले में कहा था कि यह मामला जमीन विवाद का है और इसे संवैधानिक बेंच को रेफर नहीं किया जाएगा.
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