अयोध्‍या केस: 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई, नई बेंच का गठन

Jan 10, 2019, 11:57 IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले के लिए नई बेंच का गठन किया जाएगा. इस मामले से जुड़े 18836 पेज के दस्तावेज हैं, जबकि हाई कोर्ट का फैसला ही 4304 पेज का है. जो भी मूल दस्तावेज हैं उनमें अरबी, फारसी, संस्कृत, उर्दू और गुरमुखी में लिखे हैं.

Supreme Court bench will hear Ram Mandir case on January 10
Supreme Court bench will hear Ram Mandir case on January 10

सुप्रीम कोर्ट में 10 जनवरी 2018 को पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस रंजन गोगाई ने कहा कि आज सिर्फ सुनवाई की तारीख तय की जाएगी.

इस बीच मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने पांच सदस्‍यीय बेंच में जस्टिस यूयू ललित के शामिल होने पर सवाल उठाए. राजीव धवन ने कहा कि वर्ष 1994 में जस्टिस ललित बाबरी मस्जिद विवाद में पूर्व मुख्यमंत्री कल्‍याण सिंह की पैरवी कर चुके हैं.

राजीव धवन के सवाल उठाने के बाद चीफ जस्टिस ने बाकी जजों के साथ मशविरा किया. इस पर जस्टिस यूयू ललित ने सुनवाई से अपने आप को अलग करने की बात कही.

अब जस्टिस ललित के खुद ही बेंच से हटने की बात कहने पर अयोध्‍या मसले पर नई संवैधानिक बेंच का गठन होगा. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी और नई बेंच का गठन किया जाएगा. उल्‍लेखनीय है कि यह पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अयोध्या मामले की सुनवाई को टाल दी है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली इस पांच सदस्यीय संविधान पीठ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़ शामिल थे.

इसस पहले 04 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अयोध्या जमीन विवाद मामले पर 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई नई पीठ करेगी.

अब पांच जजों के बेंच इस मामले की सुनवाई की करेगी. अब नई बेंच ही ये तय करेगी कि क्या ये मामला फास्टट्रैक में सुना जाना चाहिए या नहीं. सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ के सामने हुई.

इससे पहले 27 सितंबर 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2-1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गई अपनी टिप्पणी पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामले को पांच न्यायमूर्तियों की खंडपीठ के पास भेजने से इंकार कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 01 जनवरी 2019 को ही कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के मामले में न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अध्यादेश लाने के बारे में निर्णय का सवाल उठेगा.

क्या था मामला?

  • इस्माइल फारूकी ने अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती दी थी जिस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि नमाज पढ़ना मस्जिद का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.
  • मुस्लिम समुदाय इससे सहमत नहीं था और वह चाहता था कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर दोबारा से विचार करे.
  • सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई थी कि मस्‍जिद में नमाज़ मामले पर जल्द निर्णय लिया जाए.
  • मुस्लिम समुदाय यह भी चाहता था कि मुख्य मामले से पहले 1994 के इस फैसले पर सुनवाई हो. अयोध्या जमीन विवाद पर फैसला तथ्यों के आधार पर होगा.
  • सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रखा था. इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था, ताकि हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें.

 

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2010 में जो फैसला दिया था उसके खिलाफ हिंदू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इससे पहले मामले की सुनवाई चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर कर रहे थे.

अयोध्या विवाद कब क्या हुआ?

वर्ष

विवाद

1949

बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां देखी गई. सरकार ने परिसर को विवादित घोषित कर भीतर जाने वाले दरवाज़े को बंद किया.

1950

फ़ैज़ाबाद अदालत में याचिका दायर कर मस्जिद के अंदर पूजा करने की मांग की गयी.

1959

निर्मोही आखड़ा ने याचिका दायर कर मस्जिद पर नियंत्रण की मांग की.

1961

सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की याचिका, मस्जिद से मूर्तियों को हटाने की मांग की गयी.

1984

वीएचपी ने राम मंदिर हेतु जनसमर्थन जुटाने का अभियान शुरू किया.

1986

फ़ैज़ाबाद कोर्ट ने हिंदुओं की पूजा हेतु मस्जिद के द्वार खोलने के आदेश दिए.

1989

राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को विवादित स्थल के क़रीब पूजा की इजाज़त दी.

1992

कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिराया और अस्थाई मंदिर का निर्माण किया.

2003

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने ASI को विवादित स्थल की खुदाई का आदेश दिया.

2010

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने विवादित ज़मीन को तीन भाग में बांटने के आदेश दिए, अलग-अलग पक्षकारों ने हाइकोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

 

2011

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के फ़ैसले को लागू करने पर रोक रहेगी. साथ ही विवादित स्थल पर सात जनवरी 1993 वाली यथास्थिति बहाल रहेगी.

2016

विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.

2017

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा कि अयोध्या विवाद मामले को आपसी बातचीत से सुलझा लेना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के दिए गए इस्माइल फ़ारूक़ी फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच का गठन किया.

2018

सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से जुड़े वर्ष 1994 वाले फ़ैसले पर पुनर्विचार से इनकार किया.

 

बता दें कि इससे पहले इस मामले की सुनवाई तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच कर रही थी. रिटायरमेंट से पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने इस मामले पर एक फैसले में कहा था कि यह मामला जमीन विवाद का है और इसे संवैधानिक बेंच को रेफर नहीं किया जाएगा.

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Vikash Tiwari is an content writer with 3+ years of experience in the Education industry. He is a Commerce graduate and currently writes for the Current Affairs section of jagranjosh.com. He can be reached at vikash.tiwari@jagrannewmedia.com
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