तालिबान ने फिर अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है. तालिबान के आतंकियों ने सुबह से ही काबुल की घेराबंदी कर ली थी. बाद में जब वे काबुल में घुसे अफगानिस्तान की फौज ने सरेंडर कर दिया. इसके बाद सरकार और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई और राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश से ताजिकिस्तान के लिए रवाना हो गए हैं.
राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ एनएसए हमदुल्लाह मोहिब समेत कई दूसरे नेताओं ने भी देश छोड़ दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ने के कुछ ही घंटों बाद तालिबान ने काबुल में अफगान राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है. तालिबान ने यह भी कहा है कि अफगानिस्तान में सत्ता हस्तांतरण के लिए कोई भी अंतरिम सरकार नहीं बनाई जाएगी.
अफगानिस्तान पर कब्जा
तालिबान ने अफगानिस्तान पर लगभग दो दशक बाद फिर कब्जा जमाया है. सितंबर, 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और अन्य जगहों पर अलकायदा आतंकियों के हमला किया था. इसके बाद अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के बाद तालिबान को सत्ता छोड़कर भागना पड़ा था. अमेरिका ने 20 साल बाद अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाया तो तालिबान ने फिर कब्जा जमा लिया.
अफगानिस्तानी सेना टिक नहीं पाई
तालिबान के आक्रमण के आगे अफगानिस्तानी सेना टिक नहीं पाई. तालिबान ने अफगान सुरक्षा बलों को अमेरिकी सेना के हवाई सहयोग के बावजूद खदेड़ दिया है. कुछ दिनों पहले ही अमेरिकी सेना ने अनुमान जताया था कि एक महीने से कम समय में ही राजधानी पर तालिबान का कब्जा हो जाएगा.
अफगानिस्तान का भावी राष्ट्रपति
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर उन चार लोगों में से एक है जिसने 1994 में अफगानिस्तान में तालिबान आंदोलन की शुरुआत की थी. तालिबान के हाथों शांतिपूर्वक सत्ता हस्तांतरण के बाद मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान का नए राष्ट्रपति बन सकते हैं. तालिबान ने उन्हें भावी राष्ट्रपति घोषित किया है.
तालिबानी संगठन का सबसे बड़ा नेता
तालिबानी संगठन का सबसे बड़ा नेता अमीर अल-मुमिनीन है, जो राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों के लिए जिम्मेदार है. फिलहाल इस पद पर मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा है. यह पहले तालिबान का मुख्य न्यायाधीश रह चुका है. वे तालिबान का उपसंस्थापक और दोहा के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख भी है.
तालिबान का जन्म: एक नजर में
अफगानिस्तान में तालिबान का उदय भी अमेरिका के प्रभाव से कारण ही हुआ था. अब वही तालिबान अमेरिका के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है. 1980 के दशक में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में फौज उतारी थी, तब अमेरिका ने ही स्थानीय मुजाहिदीनों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था. नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया, लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान का जन्म हो गया.
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