इंग्लैण्ड के जीव विज्ञानियों ने अंटार्कटिका में समुद्र से 8000 फुट की गहराई में नई जीव प्रजातियों की खोज की. जीव विज्ञानियों के अनुसार अंटार्कटिका के समुद्र की गहराइयों में जीव जंतुओं ने अपनी पूरी दुनिया बसा रखी है. इसे लॉस्ट वर्ल्ड का नाम दिया गया. इस नई दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या में 16 सेंटीमीटर आकार वाले केकड़े पाए गए हैं. इन्हें येती क्रेब का नाम दिया गया है. इनकी संख्या लगभग 600 है. दूसरे केकड़ों से अलग इनकी छाती पर बाल हैं.
अंटार्कटिका के करीब समुद्र तल से लगभग 8,000 फुट की गहराई में कुछ ऐसी ओझल प्रजातियों का पता चला है जो गर्म, अंधेरे माहौल में समुदायों में रहते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड, नेशनल ओसेनोग्राफी सेंटर और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने केकड़ा, स्टारफिश, सीप, समुद्री रत्नज्योति और ऑक्टोपस की ऐसी प्रजातियां खोजी हैं जो विज्ञान के लिए बिल्कुल नई हैं. अनुसंधानकर्ताओं द्वारा खोजा गई सबसे सुंदर और अनोखी प्रजाति ऑक्टोपस की है. इसके अलावा एक सात पैरों वाली स्टारफिश भी मिली है.
जीव विज्ञानियों ने प्रथम बार रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल (आरओवी) की मदद से महासागर के नीचे पूर्वी स्कोशिया रिज की छानबीन की. पूर्वी स्कोशिया रिज के कुछ इलाकों में गर्म जल के सुराख हैं. यहां का तापमान 382 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. वहां सूर्य की रोशनी तक नहीं पहुंचती और कुछ खास किस्म के रसायन खूब पाए जाते हैं. इंग्लैण्ड के जीव विज्ञानियों व अनुसंधानकर्ताओं की लॉस्ट वर्ल्ड नामक रिपोर्ट पीएलओएस बायोलॉजी में जनवरी 2012 के प्रथम सप्ताह में प्रकाशित की गई.
लॉस्ट वर्ल्ड नामक रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी स्कोशिया रिज के कुछ इलाकों में केकड़े की एक नई प्रजाति बड़े-बड़े समुदायों में निवास करती है. यह प्रजातियां समुद्र के अंदर बने ज्वालामुखियों की वजह से खुद को जीवित रख पाने में सक्षम रही हैं. ज्वालुखियों की वजह से वहां का तापमान बढ़कर 380 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. इन जगहों पर ज्वालामुखियों की वजह से काला धुंआ निकलता रहता है, जो इन जीवों के लिए प्राणदायी है. सूरज की रोशनी से हजारों फीट नीचे इसी काले धुंएं में मौजूद रसायनों की वजह से इन्हें ऊर्जा मिलती है और ये प्रजातियां जिंदा रहती हैं.
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