साहित्य अकादमी द्वारा हिंदी कवि कुंवर नारायण को महत्तर सदस्यता 20 दिसंबर 2010 को नई दिल्ली में प्रदान किया गया. नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर और वर्ष 2009 में 2005 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कुंवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक के प्रमुख कवियों में रहे हैं. कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिए वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है. यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है. उनकी कविताओं-कहानियों का कई भारतीय-विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है. तनाव पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया.
ज्ञानपीठ के अलावा कुंवर नारायण को साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, कुमार आशान पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, शलाका सम्मान, मेडल ऑफ़ वॉरसा यूनिवर्सिटी, पोलैंड और रोम के अंतरराष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान और 2009 में पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया.
इनकी प्रमुख कृतियां हैं चक्रव्यूह, तीसरा सप्तक, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों, आत्मजयी, वाजश्रवा के बहाने और आकारों के आसपास.
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