प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की सिफारिश (आर-204) को 6 जनवरी 2015 को अपनी मंजूरी दी. यह मंजूरी अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था परिवर्तन के विषय में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की सिफारिश (आर-204) से संबंधित है.
उपरोक्त सिफारिश (आर-204) मजदूरों के मौलिक अधिकार का सम्मान करने और उद्यमों में सृजन, संरक्षण और स्थिरता, औपचारिक अर्थव्यवस्था में उत्कृष्ट नौकरियों को बढ़ावा देने और औपचारिक अर्थव्यवस्था नौकरियों की अनौपचारिकता रोकने में मदद करते हुए अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था में आर्थिक इकाइयों और कामगारों के परिवर्तन में मदद के लिए सदस्यों को दिशा-निर्देश उपलब्ध कराती है. आईएलओ की सिफारिश को अपनाने में भारत पर कोई वित्तीय भार नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह सिफारिश देश के सभी कामगारों पर लागू है, जो इस उपाय की अभिपुष्टि करता है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत, आईएलओ के हर सदस्य देश से यह अपेक्षित है कि वह सम्मेलन के सत्र की समाप्ति की एक वर्ष की अवधि के भीतर सक्षम प्राधिकरण (भारत के मामले में संसद) के समक्ष सम्मेलन द्वारा अपनाये गये उपायों को प्रस्तुत करे.
आईएलओ कन्वेंशन से संबंधित मुख्य तथ्य:
आईएलओ कन्वेंशन अंतरराष्ट्रीय संधिया हैं जिनकी सदस्य देश संपुष्टि करते हैं. आईएलओ कन्वेंशन का सत्यापन एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है. एक बार सम्पुष्टि होने के बाद आईएलओ कन्वेंशन विशेष कन्वेंशन की सम्पुष्टि करने वाले सदस्य देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाता है. आईएलओ की सिफारिशों को सम्पुष्टि के लिए खुला नहीं रखा जाता लेकिन ये नीति, कानून और प्रक्रिया को तैयार करने के संबंध में राष्ट्रीय सरकारों को मार्गदर्शन प्रदान करती हैं. एक प्रोटोकॉल कन्वेंशन को आंशिक रूप से संशोधित करने वाला एक साधन है. कन्वेंशन और प्रोटोकॉल के कन्वेंशन की औपचारिक सम्पुष्टि के संबंध में सरकार राष्ट्रीय कानूनों और प्रक्रियाओं को अलग-अलग ध्यान में रखकर निर्णय करती है.
विदित हो कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के जून 2015 में जेनेवा में आयोजित 104वें सत्र में उपरोक्त सिफारिश को अपनाया था. भारत ने इसे अपनाने का समर्थन किया था. केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री ने इस सत्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया था.
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