सेंटर फॉर द एड्स प्रोग्राम ऑफ रिसर्च (सीएपीआरआईएसए,कैप्रिसा) के शोधकर्ताओं ने ऐसे रोग प्रतिकारक (एंटीबॉडीज) खोजे हैं, जो एचआईवी के मल्टीपल स्ट्रेंस को बेअसर करके उन्हें मार सकते हैं. यह अध्ययन वैज्ञानिक जर्नल 'नेचर' के 3 मार्च 2014 के अंक में प्रकाशित हुआ है.
शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया कि किस तरह कैप्रिसा 256 (सीएपी256) के नाम से संदर्भित एक दक्षिण अफ्रीकी महिला के शरीर ने प्रबल रोग प्रतिकारक निर्मित करके एचआईवी संक्रमण का प्रत्युत्तर दिया. इन रोग प्रतिकारकों को एंटीबॉडीज के मल्टीपल स्ट्रेंस को मारने की उनकी योग्यता के कारण बेअसरकारी रोग प्रतिकारक (न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज) भी कहा जाता है.
रोग प्रतिकारक किस तरह विकसित किए गए
शोधकर्ताओं ने रोग प्रतिकारक पहले सीएपी256 के रक्त में मौजूद एंटीबॉडीज की पहचान करके और फिर लैब में उन एंटीबॉडीज की क्लोनिंग द्वारा उनका डुप्लीकेशन करके बनाए. क्लोन किए गए एंटीबॉडीज को फिर इन रोग प्रतिकारकों के निर्माण के लिए प्रतिरक्षक प्रणाली के अनुसरण का मार्ग प्रकाशित करने के लिए इस्तेमाल किया गया.
शोध के निष्कर्ष
2013 में किए गए अपने पिछले शोध में कैप्रिसा के शोधकर्ताओं ने पाया कि एचआईवी वायरस की सतह पर एक शुगर मॉलिक्यूल की स्थिति में बदलाव एचआईवी के विरुद्ध ब्रॉडली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज के विकास की ओर ले गया.
किंतु सीएपी256 पर किए गए शोध में शोधकर्ता एक ब्रॉडली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी को अलग करके और उसके उद्भव का पता लगाकर यह जानने में भी सफल रहे कि वह किस तरह उभरा. यह इन संरक्षात्मक एंटीबॉडीज के दुर्लभ प्रीकर्सर को उत्प्रेरित कर सकने वाली एचआईवी टीके की नई रणनीतियों की और अग्रसर कर सकता है.
सीएपी256 पर किए गए अध्ययन ने यह भी दर्शाया कि ब्रॉडली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज में कुछ असामान्य लक्षण हैं. इन एंटीबॉडीज की आम तौर पर लंबी भुजाएँ हैं, जिन्होंने उन्हें एचआईवी की रक्षा करने वाले शुगर कोट तक पहुँचने में समर्थ बनाया. इतना ही नहीं, इन एंटीबॉडीज की लंबी भुजाएँ ठीक शुरू में ही थीं, जिससे उन्हें एचआईवी को मारने में असरदार होने के लिए कम समय और कम ही बदलाव जरूरी हुए.
समस्त एचआईवी इन्फेक्टेड लोग एंटीबॉडीज बनाकर एचआईवी का प्रत्युत्तर देते हैं. ज्यादातर मरीजों में ये एंटीबॉडीज एचआईवी की एक व्यापक श्रृंखला को मारने में समर्थ नहीं होते, जिसे न्यूट्रलाइजिंग ब्रेड्थ के अभाव के रूप में वर्णित किया जाता है. किंतु कुछ इन्फेक्टेड लोगों में वे स्वभावत: ऐसे एंटीबॉडीज बनाते हैं, जो अपने ब्रॉडली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज से एचआईवी की अनेक किस्मों को बेअसर कर देते हैं.
दक्षिणी अफ्रीकी स्वास्थ्य विभाग (एसएडीएच) की इस विकास में विश्व के अन्य किसी भी देश से ज्यादा रुचि है, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका में वैश्विक रूप से एचआईवी इन्फेशन का सबसे बड़ा बोझ (30 प्रतिशत) है.
कैप्रिसा संघ के बारे में
शोधकर्ताओं के दल का नेतृत्व नेशनल इंस्टीटयूट फॉर कम्यूनिकेबल डिजीजेज (एनआईसीडी) के प्रोफेसर लिन मॉरिस ने किया. कैप्रिसा संघ में जोहानिसबर्ग के नेशनल इंस्टीटयूट फॉर कम्यूनिकेबल डिजीजेज, यूनिवर्सिटी ऑफ क्वाजुलू-नेटल और यूनिवर्सिटी ऑफ केपटाउन, अमेरिका के नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिजीजेज के टीका अनुसंधान केंद्र और न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक शामिल थे.
शोध के लिए फंडिंग
शोध के लिए फंड मुख्यत: अमेरिका के नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हैल्थ्स वैक्सीन रिसर्च सेंटर और दक्षिण अफ्रीका के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने उपलब्ध कराया. दक्षिण अफ्रीकी शोधकर्ताओं के पास वेलकम ट्रस्ट, फोगार्टी इंटरनेशनल सेंटर, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन और पोलियोमिलिटिस रिसर्च फाउंडेशन की फेलोशिप भी है.
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