सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएस निज्जर की अध्यक्षता वाली पीठ ने अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा जिला पंचायत अध्यक्ष को हटाने को सही ठहराते हुए निर्णय दिया कि भारत के लोग सर्वोच्च हैं न कि चुने हुए प्रतिनिधि. सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय उत्तर प्रदेश के सीतापुर की जिला पंचायत अध्यक्ष ऊषा भारती की याचिका पर 30 मार्च 2014 को सुनाया.
पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि जिला पंचायत अध्यक्ष को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाने का प्रावधान करने वाली पंचायती राज अधिनियम की धारा 28, संविधान के खिलाफ नहीं है. निर्वाचित प्रतिनिधि के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान न सिर्फ संवैधानिक है बल्कि यह जनप्रतिनिधियों में पारदर्शिता और जवाबदेही भी सुनिश्चित करता है.
पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि चुना हुआ पंचायत अध्यक्ष तभी तक पद पर काम कर सकता है जब तक उसे निर्वाचकों का विश्वास प्राप्त है.
विदित हो कि वर्ष 1993 में संविधान संशोधन (73वां) अधिनियम, 1992 के द्वारा पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दी गयी. इससे पंचायत को एक गरिमामय, जीवंत और उत्तरदायी लोगों के संगठन का दर्जा प्राप्त हुआ. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया हैं.
73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के मुख्य प्रावधान
• एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत).
• ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना.
• प्रति पांच वर्षों में पंचायतों के नियमित चुनाव.
• अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण.
• पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण.
• पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्ता आयोगों का गठन.
• राज्य चुनाव आयोग का गठन.
• 73वां संशोधन अधिनियम पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को अधिकार प्रदान करता है.
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