सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार पहले से किसी अन्य कार्य के लिए आवंटित भूमि को जनहित में दूसरे काम में इस्तेमाल में लाना अवैध नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ ने यह फैसला बंबई उच्च न्यायालय के एक फैसले को दरकिनार करते हुए 19 फरवरी 2011 को दिया. बंबई उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में एक चैरिटेबल ट्रस्ट को दिए गए भूमि आवंटन इसलिए रद्द कर दिया था कि उसने आवंटन के मूल उद्देश्य के विपरीत आवंटित भूमि का इस्तेमाल किसी अन्य कार्य के लिए किया था.
ज्ञातव्य हो कि यह मामला चैरिटेबल ट्रस्ट प्रगति महिला मंडल और एक जनहित याचिका के जुड़ा है. चैरिटेबल ट्रस्ट प्रगति महिला मंडल को आवंटित भूमि पर एक कन्या विद्यालय का निर्माण करना था जिसपर ट्रस्ट ने लड़कियों और कामकाजी महिलाओं के लिए कम दरों पर रहने के लिए छात्रावास बनवाया था. ट्रस्ट ने विद्यालय निर्माण हेतु धन राशि की कमी को छात्रावास निर्माण की वजह बताई थी. बंबई उच्च न्यायालय ने दायर जनहित याचिका पर कार्रवाई करते हुए आवंटन को रद्द कर दिया था. परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में बताया कि लड़कियों और महिलाओं को अपने शहर से बाहर जाने के बाद सुरक्षित और सही आवास को खोजने में काफी समस्याएं और कठिनाई होती है, अतः किए गए निर्माण को अवैध करार नहीं दिया जा सकता.
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