जापान के शोधकर्ताओं ने इबोला वायरस का पता लगाने का नया तरीका विकसित किया

Sep 4, 2014, 14:52 IST

जापान के शोधकर्ताओं ने 2 सितंबर 2014 को नागासाकी विश्वविद्यालय में इबोला वायरस का 30 मिनट में पता लगाने के लिए एक नई विधि आरटी-लैंप विकसित की

जापान के शोधकर्ताओं ने 2 सितंबर 2014 को नागासाकी विश्वविद्यालय में इबोला वायरस का 30 मिनट में पता लगाने के लिए एक नई विधि आरटी-लैंप विकसित की. इस विधि को जापानी शोधकर्ताओं ने प्रो. जीरो यासुदा के नेतृत्व में आईकेन केमिकल्स के साथ मिलकर विकसित किया.

आरटी-लैंप (रिवर्स ट्रांस्क्रिप्शन–लूप–मेडिएटेड आईसोथर्मल एम्प्लीफिकेशन) तकनीक इबोला वायरस के डीएन को संश्लेषित और परिवर्धित कर इबोला वायरस का पता लगाने के साथ ही मारबर्ग हेमरेज फीवर और लास्सा फीवर के वायरस का भी पता लगाता है.

विकसित किया गया यह नया तरीका सस्ता औऱ सरल है और इसका इस्तेमाल महंगे परीक्षण उपकरणों की जगह किया जा सकता है. इस नई विधि के विकास की जरूरत पश्चिम अफ्रीकी देशों जैसे गिनी, लाइबेरिया, सिएरा लियोन और नाइजीरिया में इबोला वायरस के प्रकोप की वजह से हुई. इबोला ने अब तक 1400 लोगों की जान ले ली है.

इबोला का पता कैसे चला था?
शोधकर्ताओं ने सबसे पहले इबोला वायरस के लिए विशिष्ट जीनों को बढ़ाने वाले एक रंजक (प्राइमर) को विकसित किया. यह प्राइमर पांच प्रकार के वायरस के जीनों के छह सेक्शन– जिसमें बेस सीक्वेंस में सबसे कम अंतर था, को चुन कर विकसित किया गया था. इसके बाद खून के नमूने में इबोला वायरस की मौजूदगी को जांचने के लिए शोधकर्ताओं ने संक्रमण को रोकने के लिए खून को डिटॉक्सिफाइ किया. इसके बाद, नमूने में मौजूद किसी भी वायरस से आरएनए निकाला गया और उसका इस्तेमाल डीएनए के संश्लेषण में किया. उसके बाद संश्लेषित डीएनए को प्राइमर्स और दूसरे पदार्थों के साथ मिलाया गया और उसे पारदर्शी प्लास्टिक ट्यूब में रखा दिया. फिर, उस द्रव्य को 60– 65 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किया गया.

अगर इबोला मौजूद है, तो वायरस के लिए विशिष्ट डीएनए प्राइमर्स के कारण करीब 30 मिनट में बढ़ जाएगा. इस प्रक्रिया का बाई–प्रोडक्ट द्रव्य को धुंधला बना देता है, जो कि इबोला के होने की पुष्टि करता है.

RT-LAMP तकनीक बनाम PCR तकनीक
आरटी-लैंप तकनीक पॉलिमराइज चेन रिएक्शन (पीसीआर) तकनीक के मुकाबले बहुत अच्छा है. पीसीआर तकनीक जो कि फिलहाल इबोला वायरस का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, में, डीएनए को ठंडा और गर्म कर बढ़ाया जाता है. प्रक्रिया में एक से दो घंटे का समय लगता है और इसमें समर्पित उपकरण और बिजली की स्थिर आपूर्ति जरूरी है. इसका इस्तेमाल कम बिजली आपूर्ति वाले इलाकों में मुश्किल है.

दूसरी तरफ आरटी-लैंप तकनीक एक छोटा बैट्री चालित वार्मर से चलता है जिसका इस्तेमाल विकासशील देशों के इबोला प्रभावित इलाकों में आसानी से किया जा सकता है.

Jagran Josh
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Education Desk

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