विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) ने पश्चिम अफ्रीका में इबोला विषाणु से फैल रही महामारी को अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य आपात स्थिति घोषित किया और प्रभावित देशों की मदद के लिए नियंत्रण सहायता की अपील की. यह निर्णय जिनेवा में दो दिवसीय आपात सत्र आयोजित करने के बाद लिया गया. यह निर्णय संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य संस्था की आपात समिति की जिनेवा में आयोजित दो दिवसीय बैठक के बाद लिया गया.
इस वर्ष की शुरुआत में गिनी में फैलने के के बाद इबोला से अब तक कम– से– कम 932 लोगों की मृत्यु हो गई और अब तक 1700 से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं.
इबोला प्रभावित पश्चिमी अफ्रीकी देशों जिसमें लाइबेरिया, गिनी औऱ सिएरा लियोन शामिल हैं, में आपातकाल घोषित कर दिया गया.
इबोला
• इबोला वायरस बीमारी (ईवीडी) एक गंभीर मानव रोग है.
• इबोला वायरस को पहले इबोला रक्तस्रावी बुखार (इबोला हेमरैजिक फीवर) के नाम से जाना जाता था.
• ईवीडी का प्रकोप आम तौर पर ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन के पास स्थित मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के गांवों में देखा गया.
• यह वायरस संक्रमित जानवरों खासकर पटीरोपोडाडी परिवार के चमगादड़ों के संपर्क में आने से फैलता है.
• इबोला वायरस से संक्रमित लोगों में दो से तीन दिनों के बाद लक्षण नजर आते हैं. ये लक्षण बुखार, गले में खराश, सिर दर्द, उल्टी, मांसपेशियों में दर्द आदि हो सकते हैं. बुरी स्थित में, व्यक्ति को डायरिया के साथ लीवर और किडनी संबंधित परेशानियां हो सकती हैं.
• इबोला से संक्रमित मरीजों को गहन देखभाल की जरूरत होती है. ऐसे मरीजों को बचाने के लिए अब तक कोई विशेष उपचार या दवाएं उपलब्ध नहीं हैं.
• इबोला वायरस का पता सबसे पहले वर्ष 1976 में चला था जब इसने नजारा, सूडान और कांगों के यामबुकु में लोगों को संक्रमित किया था. यामबुकु इबोला नदी के पास स्थित एक गांव है. इबोला वायरस का नाम इसी नदी पर रखा गया है.
• लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रो. पीटर पायट ने कांगों में मरणासन्न कैथलिक नन के खून के नमूने से वर्ष 1976 में इबोला वायरस की खोज की थी.

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