17 अप्रैल 2016 को भारतीय रेलवे ने पहली बार चालू डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) प्रोजेक्ट के निरक्षण के लिए मानवरहित वायु वाहन या ड्रोन का प्रयोग किया.
डीएफसी के कुल 98 किलोमीटर की निगरानी के लिए ड्रोन का प्रयोग ट्रायल आधार पर तीन दिनों के लिए किया गया. इसमें से पश्चिमी डीएफसी में राजस्थान में भागेगा से श्रीमाधोपुर के बीच 42 किमी लंबे ट्रैक और बिहार में दुर्गावती एवं सासाराम के बीच 56 किमी लंबी लाइन की निगरानी के लिए इसका प्रयोग किया गया था.
ड्रोन के प्रयोग ने भारतीय रेलवे के अधिकारियों को डीएफसी परियोजना के सर्वेक्षण खंडों की स्थिति की रिपोर्ट तेजी और आसानी से तैयार करने में सक्षम बनाया.
ड्रोन को एक निजी ऑपरेटर से किराए पर लिया गया था और हवाई सर्वेक्षण के लिए प्रति किमी 3000 रुपये खर्च हुए. फिलहाल रेलवे द्वारा संचालित करीब 170 परियोजनाएं ऐसी हैं जिसमें नई लाइनों को दोहरा करना और बिछाना भी शामिल है.
यह ट्रायल भारतीय रेलवे की उस योजना का हिस्सा था जिसमें डीएफसी के तहत जारी सभी परियोजनाओं की निगरानी और रेल हादसों के बाद जमीनी स्थिति का आकलन ड्रोनों से कराई जाने की भारतीय रेलवे योजना बना रही है.
ड्रोन उड़ने वाला रोबोट होता है जिसे दूर बैठ कर सॉफ्टवेयर– नियंत्रित उड़ान योजनाओं जो उसकी प्रणाली में लगा होता है और जीपीएस के साथ संयोजन में काम करता है, को रिमोट से संचालित कर सकते हैं.
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