देशी बैंगन और बीटी बैंगन में क्या अंतर है यह तो वक़्त ही बताएगा पर आम आदमी, राजनीतिज्ञों, वैज्ञानिकों में इस विषय को लेकर अंतर साफ है. केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्रालय और कृषि मंत्रालय के बीच इस मुद्दे को लेकर तनातनी हो चुकी है. पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार बीटी बैंगन दुनिया की पहली ऐसी जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसल है जिसका खाने के लिए इस्तेमाल किया जाना है, इसलिए सभी पहलुओं को जांचे-परखे बिना इसकी खेती की अनुमति नहीं दी जा सकती है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से देशी बैंगन को बचाने के लिए किये गए उपायों की डिटेल्स मांगी है.
बीटी बैंगन की बात की जाए तो इसका नामकरण मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया बैसिलस थूरिजिएन्सीन्स के नाम पर किया गया है. जेनेटिक इंजीनियरिंग के प्रयोग से बीटी जीन का प्रवेश किसी भी फसल में करा के उसमें कीटरोधी गुण पैदा किया जा सकता है. महाराष्ट्र की निजी बीज कंपनी महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी लिमिटेड (MAHYCO) और अमेरिका की कंपनी मोंसेंटो ने यही बीटी बैंगन में भी किया. पर लंबे प्रयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का अभी तक ठीक से आकलन नहीं किया गया है. और यही मुद्दे की वजह है.
विभिन्न शहरों में बीटी बैंगन को लेकर किये गए जन सभाओं के दौरान किसानों और कार्यकर्ताओं का विरोध साफ दिखा. ज्यादातर वैज्ञानिक भी बैंगन के इस हायब्रिड नस्ल के खिलाफ ही दिखे. कोलकाता मंय हुए जनसभा में एक वैज्ञानिक ने विरोध दर्ज करते हुए कहा कि बीटी बैंगन पर्यावरण के लिए खतरा है, साथ ही यह किसानों को बीज के लिए मल्टीनेशनल कंपनियों पर आश्रित भी बना देगा, जिससे उनकी माली हालत और खराब हो जाएगी. हालाँकि कुछ वैज्ञानिक इसके समर्थन में भी दिखे, जिनके अनुसार इसकी खेती से नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों पर काबू पाया जा सकता है. कुछ किसानों ने पर्यावरण मुद्दे को दरकिनार करते हुए कहा कि हमें बैंगन की ऐसी नस्ल चाहिए, जो ज्यादा पैदावार दे और मुनाफा ज्यादा हो. वहीँ राज्यों की बात करें तो बिहार, उड़ीसा, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश ने बीटी बैंगन के व्यावसायिक खेती पर अपनी नाराजगी जता दी है.
वर्तमान में ट्राइल की जा रही अन्य जीन परिवर्तित (जेनेटिकली मोडीफायड) फसलें
1. टमाटर : भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान – बंगलौर, भारतीय सब्जी अनुसन्धान संस्थान - वाराणसी और भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली के राष्ट्रीय प्लांट बायोटेक्नोलॉजी अनुसन्धान केंद्र द्वारा कई चरणों में ट्रांसजेनिक टमाटर पर ट्राइल किये जा रहे हैं ।
2. हाइब्रिड मक्का : हिशेल और 900 एम गोल्ड दो हाइब्रिड मक्के की फसल हैं जिनके ऊपर बायोसेफ्टी रिसर्च लेवल – 1 (BRL-1) किया जा रहा है। यह रिसर्च राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर (बिहार); महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी (महाराष्ट्र); और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर (तमिलनाडु) में मोंसैंटो इंडिया लिमिटेड, नई दिल्ली द्वारा किया जा रहा है।
3. बीटी मक्का : कृषि विज्ञान संस्थान, गाँधी कृषि विज्ञान केंद्र (GKVK) बंगलौर; कृषि विज्ञान संस्थान, धारवाड़; महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकि विश्वविद्यालय, उदयपुर और आचार्य एन. जी. रंगा कृषि विश्वविद्यालय, हैदराबाद में यह रिसर्च पायनियर ओवरसीज कोर्पोरेशन और डॉ एग्रो साइंस के द्वारा किया जा रहा है।
4. आलू : केंद्रीय आलू अनुसन्धान संस्थान, शिमला के द्वारा इसके मोदीपुरम कैम्पस में सीमित फील्ड ट्राइल किया जा रहा है।
5. बीटी चावल : पतंचेरू के फसल विकास केंद्र में सीमित फील्ड ट्राइल बेयर बायोसाइंसेज प्राइवेट लिमिटेड, गुडगाँव के द्वारा किया जा रहा है। दाग रहित चावल के लिए Cry 2 Ab जीन के साथ निजामाबाद, आन्ध्र प्रदेश में मायको नाम की कंपनी सेलेक्शन ट्राइल कर रही है।
6. गोभी, पत्ता गोभी : इन पर नन्हेम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और सनग्रो सीड्स रिसर्च लिमिटेड, नई दिल्ली के द्वारा ट्राइल किया जा रहा है।
7. जेड बीटी भिन्डी : हाइब्रिड संस्करण MHOK 10 बीटी और इसके नॉन बीटी भिन्डी पर सीमित फील्ड ट्राइल महाराष्ट्र के जालना जिले में किया जा रहा है, जिसमें इसके विषाक्त होने या इसके बायोसेफ्टी पर रिसर्च कर रही है मायको।
8. बीटी सोरगम : सोरगम के राष्ट्रीय शोध केंद्र, हैदराबाद द्वारा इसके दो स्वरूपों पर फील्ड ट्राइल किया जा रहा है – पहला, नॉन ट्रांसजेनिक लाइन (M 35-1) और दूसरा है नैचुरल रेसिस्टेंस जर्म प्लाज्म लाइन (IS 2205)
9. खरबूज : भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान, बंगलौर द्वारा किया जा रहा है।
10. पपीता : तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, तमिलनाडु के द्वारा किया जा रहा है।
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