भारत और पाकिस्तान के मध्य सियाचिन मुद्दे पर रक्षा सचिव स्तर की 12वें दौर की दो दिवसीय वार्ता नई दिल्ली में 31 मई 2011 को संपन्न हुई. भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व रक्षा सचिव प्रदीप कुमार ने और पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल कर नेतृत्व पाकिस्तान के रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत) सैयद अतहर अली ने किया. पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल में दो असैन्य अधिकारी और चार सैन्य अधिकारी तथा भारतीय पक्ष में विशेष सचिव आरके माथुर, सैन्य परिचालन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल एएम वर्मा और महासर्वेक्षक एस सुभा राव शामिल थे.
वार्ता के दौरान दोनों देशों ने सियाचिन मुद्दे पर सार्थक और निर्णायक
बातचीत जारी रखने पर सहमति जताई. दोनों पक्षों ने एक दूसरे को सियाचिन मुद्दे के बारे में अपनी धारणाओं से अवगत कराया और साथ ही इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की. दोनों देशों ने नवम्बर 2003 से जारी संघर्ष विराम की स्थिति की समीक्षा की. दोनों ही पक्ष इस्लामाबाद में फिर से किसी सुविधाजनक तारीख पर बातचीत करने का निर्णय लिया. वार्ता के अंत में दोनों पक्षों ने जारी वार्ता प्रक्रिया का स्वागत किया.
विदित हो कि वर्ष 2011 में थिंपू में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह और उनके पाकिस्तानी समकक्ष के बीच मुलाकात के दौरान रक्षा सचिव स्तरीय वार्ता प्रक्रिया पुनः बहाल करने का निर्णय लिया गया था. सियाचिन पर दोनों देशों के बीच रक्षा सचिवों की बातचीत सबसे पहले वर्ष 1985 में हुई थी. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक ने संयुक्त वार्ता का फैसला किया था.
भारत और पाकिस्तान के बीच 110 किलोमीटर लंबी ‘वास्तविक भू-स्थिति रेखा’ (एक्चुअल ग्राउंड पोजीशन लाइन, एजीपीएल) को लेकर मतभेद हैं, जो सोल्तोरो रिज तथा सियाचिन ग्लेशियर से होकर गुजरती है. दोनों देशों के बीच यह मतभेद लंबे समय से लंबित है. सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र में 1984 में पाकिस्तानी सेना के आगे बढ़ने के जवाब में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया था और इलाके के अधिकतर प्रभुत्व वाले स्थानों पर अपने सैनिकों को तैनात कर दिया. पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर के निशस्त्रीकरण की मांग कर रहा है. उसने दोनों देशों के सैनिकों की मौजूदगी और पर्यावरण पर उसके प्रभावों को लेकर जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठा रहा है. दोनों देशों ने सियाचिन ग्लेशियर से सेना हटाने का फैसला किया था. परन्तु दोनों पक्षों में आशंकाओं के चलते मामला लंबित है. भारत चाहता है कि पाकिस्तान एजीपीएल की नक्शे और वास्तविक भूमि दोनों पर पुष्टि करे. दूसरी तरफ पाकिस्तान शिमला समझौते में हुई सहमति के अनुरूप 1972 से पूर्व की सैनिकों की स्थिति को बनाए रखना चाहता है.
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