भारत के 13वें प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल का गुड़गांव के मेडिसिटी मेदांता हॉस्पिटल में 30 नवंबर 2012 को निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. केंद्र सरकार ने उनके निधन पर 7 दिनों के लिए राष्ट्रीय शोक की घोषणा की. उनका अंतिम संस्कार जगजीवन राम के स्मारक समता स्थल के पास किया गया.
जनता दल के इंदर कुमार गुजराल 21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 तक (11 महीने) प्रधानमंत्री पद पर रहे. इंदर कुमार गुजराल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार कोया कांग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त था. इंदर कुमार गुजराल व्यक्ति के रूप में भारत के 13वें प्रधानमंत्री थे. इन्होंने एचडी देवगौड़ा का स्थान लिया. एचडी देवगौड़ा जनतादल के थे. इंदर कुमार गुजराल के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने. 28 नवम्बर 1997 को कांग्रेस पार्टी द्वारा समर्थन वापस ले लेने पर इंदर कुमार गुजराल ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया.
इंदर कुमार गुजराल सरकार का विवादास्पद निर्णय वर्ष 1997 में उत्तरप्रदेश में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करना था. तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने उस प्रस्ताव को पुनर्विचार हेतु सरकार के पास वापस भेज दिया. इंदर कुमार गुजराल के प्रधानमंत्रित्वकाल में भारत ने अपनी आजादी की स्वर्ण जयंती मनाई थी.
इंद्र कुमार गुजराल: इंदर कुमार गुजराल का जन्म पाकिस्तान में स्थित पंजाब प्रांत के झेलम शहर में 4 दिसंबर 1919 को हुआ था. इनका परिवार वर्ष 1947 में भारत विभाजन के बाद दिल्ली आ गया. इंदर कुमार गुजराल की पत्नी शीला कवयित्री और लेखिका थीं जिनका निधन 2011 में हो गया. उनके परिवार में दो बेटे हैं जिनमें एक नरेश गुजराल शिरोमणि अकाली दल से राज्यसभा सांसद हैं. इंदर कुमार गुजराल के भाई सतीश गुजराल चित्रकार और वास्तुविद हैं. इंदर कुमार गुजराल ने डीएवी कॉलेज, हेली कॉलेज आफ कॉमर्स और फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर (पाकिस्तान) से शिक्षा ग्रहण की.
वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह जेल गए. 1950 के दशक में वह नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) के उपाध्यक्ष बने. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार में इंद्रकुमार गुजराल सूचना और प्रसारण मंत्रालय में राज्यमंत्री थे. उनके काल में आपातकाल (25 जून 1975) के दौरान प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई. परिणाम स्वरूप इंदर कुमार गुजराल को सूचना और प्रसारण मंत्रालय में राज्यमंत्री पद से हटा दिया गया. वर्ष 1976-80 तक उन्हें सोवियत संघ में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया. इस दौरान उन्हें मंत्रिमंडल स्तर का दर्जा प्रदान किया गया. इंद्र कुमार गुजराल 1980 के दशक में कांग्रेस छोड़कर जनता दल में शामिल हो गए.
इंद्र कुमार गुजराल 3 अप्रैल 1964 से 2 अप्रैल 1970 तक और 3 अप्रैल 1970 से 2 अप्रैल 1976 के बीच दो कार्यकाल के लिए राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. वह वर्ष 1992 में अपने तीसरे कार्यकाल के लिए (8 जुलाई 1992 से 2 अप्रैल 1998 तक) राज्यसभा के सदस्य चुने गए.
इंद्र कुमार गुजराल लोकसभा के लिए पहली बार 1989 में पंजाब की जालंधर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए. यह 9वां लोकसभा चुनाव था. दूसरे कार्यकाल में 12वीं लोक सभा चुनाव के लिए वर्ष 1998 में भी वह इसी लोकसभा सीट से अकाली दल के सहयोग से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुने गए. इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के प्रत्यासी उमराव सिंह को पराजित किया.
इंदर कुमार गुजराल 1989-90 के दौरान विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में पहली बार विदेश मंत्री बने. वर्ष 1996-97 के दौरान एचडी देवगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार में दूसरी बार विदेश मंत्री बने. इसी दौरान उन्होंने गुजराल सिद्धांत पेश की. वर्ष 1999 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया.
इंदर कुमार गुजराल की आत्मकथा (अंग्रेजी में प्रकाशित) मैटर्स ऑफ डिस्क्रीशन:एन ऑटोबायोग्राफी (Matters of Discretion: An Autobiography) है.
गुजराल सिद्धांत
- इस सिद्धांत के अनुसार बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, श्रीलंका और भूटान जैसे छोटे देशों से भारत बराबरी की अपेक्षा नहीं करेगा.
- दक्षिण एशिया का कोई भी देश अपनी जमीन से किसी दूसरे देश के खिलाफ गतिविधियां नहीं चलाएगा.
- इस क्षेत्र के देश एक-दूसरे की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करेंगे.
- कोई भी देश किसी के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे.
- इस क्षेत्र के देश विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से निपटाएंगे.
(Matters of Discretion: An Autobiography)
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