भारत में पानी के विलवणीकरण के लिए सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी इलेक्ट्रोडायलेसिस की शुरुआत सितंबर 2014 के दूसरे सप्ताह में की गई. यह तकनीक न पीने योग्य नमकीन पानी को स्वच्छ और पीने योग्य पेयजल में बदल देगा. इस प्रौद्योगिकी का विकास मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के शोधकर्ताओं ने किया. इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल आपदा राहत और सुदूर इलाकों में सेना कर सकती है.
इलेक्ट्रोडायलसिस से संबंधित मुख्य तथ्य
• इलेक्ट्रोडायलसिस दो विपरीत चार्ज वाले इलेक्ट्रोड के बीच से पानी की धार को निकाल कर काम करता है.
• ये इलेक्ट्रोड पानी से आयन को अलग कर देता है क्योंकि पानी में घुले नमक में सकारात्मक और नकारात्मक आयन होते हैं. इलेक्ट्रोडायलसिस धार के बीच में स्वच्छ जल छोड़ता है.
• झिल्लियों की एक श्रृंखला नमकीन पानी में से स्वच्छ पानी को अलग कर देती है.
• रिवर्स–ऑस्मोसिस तकनीक के विपरीत, इलेक्ट्रोडायलसिस में इस्तेमाल किए जाने वाली झिल्ली कम दबाव पर काम करता है और सिर्फ बिजली की ध्रुवता को उलट कर नमक को पानी से अलग कर देता है.
पेयजल के विलवणीकरण की जरूरत की मुख्य वजह
• भारत का लगभग 60 फीसदी पानी खारा है. ज्यादातर इलाकों में परंपरागत रिवर्स–ऑस्मोसिस विलवणीकरण संयंत्र को चलाने में मदद करने वाले बिजली ग्रिड की सेवा नहीं है.
• हालांकि मामूली नमकीन पानी सीधे तौर पर जहरीला नहीं होता लेकिन स्वास्थ्य पर इसके दीर्धकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं. इसका अप्रिय स्वाद लोगों को पानी के अन्य गंदे स्रोतों की तरफ ले जा सकता है.
• भारत के कई घरों में आज भी पानी के उपचार का घरेलू फिल्टर तकनीक काम कर रहा है. गांव–स्तर पर यह सिस्टम अधिक प्रभावी हो सकते हैं, क्योंकि इससे लोगों को फिल्टर का पानी लेना अधिक आसान हो जाएगा.
• गांव–स्तर के इलेक्ट्रोडायलसिस सिस्टम को आम सौर पैनल के साथ मिलाकर, 2000 से 5000 की आबादी वाले गांव की पानी की जरूरत को पूरा किया जा सकता है.
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