4 जनवरी 2010 को इम्पीरियल कॉलेज लंदन और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने मंगल ग्रह पर करीब 300 करोड़ वर्ष प्राचीन झील का पता लगाया. ये झीलें मंगल की भूमध्य रेखा के समीप अनुमानतः 20 कि.मी. चौड़ी बतायी गई. नासा की मंगल टोही उपग्रह से मिली तस्वीरों के 3-डी इमेज से यह पता चला कि सर्द और ठंड समझे जाने वाला मंगल ग्रह कभी इतना भी गर्म रहा होगा कि वहां पानी और झीलें थीं. संभावना व्यक्त की गई कि उस समय अत्यधिक ज्वालामुखी प्रतिक्रियाओं, उल्का पिण्डों के टकराव या परिक्रमा पथ में आये बदलाव संभवतः गर्म मंगल के कारण रहे होंगे.
झीलों की आयु का पता लगाने के लिए ‘क्रेटर इम्पैक्ट संख्या’ तकनीक का सहारा लिया गया, जो नासा ने चाँद के भू-विज्ञान का पता लगाने के लिए बनाया था.
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