उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री मायावती की सरकार ने राज्य में नई भूमि अधिग्रहण नीति का प्रारंभ 2 मई 2011 को किया. राज्य में नई भूमि अधिग्रहण नीति को तीन हिस्सों में बांटा गया है. पहला निजी क्षेत्र के लिए, दूसरा बुनियादी जरूरतों के लिए और तीसरा विकास प्राधिकरणों और औद्योगिक विकास प्राधिकरणों के लिए अधिग्रहण है.
उत्तर प्रदेश में नई भूमि अधिग्रहण नीति के अनुसार निजी कंपनियों को किसानों से सीधे जमीन खरीदनी होगी, वह भी आपसी सहमति के आधार पर. किसान विकासकर्ता को ही जमीन की रजिस्ट्री करेंगे. राज्य सरकार सिर्फ मध्यस्थ की भूमिका में होगी, और वह सिर्फ भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी करेगी. साथ ही उत्तर प्रदेश में नई भूमि अधिग्रहण नीति के अनुसार अब निजी कंपनियां किसानों की जमीन का अधिग्रहण तब तक नहीं कर सकती, जब तक उस क्षेत्र के 70 फीसदी किसान इसके लिए राजी न हों.
उत्तर प्रदेश में नई भूमि अधिग्रहण नीति के अनुसार यदि 70 प्रतिशत किसान सहमत नहीं होते हैं तो परियोजना पर पुनर्विचार किया जाएगा. नीति में स्पष्ट किया गया है कि अधिग्रहीत भूमि की 16 प्रतिशत भूमि विकसित कर संबंधित किसान को नि:शुल्क दी जानी है जिस पर स्टांप शुल्क नहीं लगेगा. भूमि अधिग्रहण अथवा अंतरण के एवज में किसान को 33 साल के लिए 23 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष की दर से भुगतान किया जाना है, जो भूमि प्रतिकर के अतिरिक्त होगा. यदि किसान वार्षिकी नहीं लेना चाहेगा तो उसे एकमुश्त 276000 रुपये प्रति एकड़ की दर से पुनर्वास अनुदान दिया जाएगा.
उत्तर प्रदेश में नई भूमि अधिग्रहण नीति के अनुसार निजी कंपनियों को भूमि अधिग्रहण से भूमिहीन हो रहे परिवारों के एक सदस्य को अनिवार्य रूप से नौकरी देनी होगी. भूमि अधिग्रहण से प्रभावित प्रत्येक ग्राम में विकासकर्ता संस्था द्वारा एक किसान भवन का निर्माण अपने खर्च पर कराया जाना है. परियोजना क्षेत्र में कक्षा आठ तक एक मॉडल स्कूल खेल के मैदान सहित संचालित करना होगा. राजमार्ग व नहर जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए भूमि अधिग्रहण का कार्य करार नियमावली के तहत आपसी सहमति से तय किया जाना शामिल है.
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