यूरोपीय आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों एलजी, फिलिप्स, पैनासोनिक सहित 6 कंपनियों पर 105 अरब रुपए (1.47 अरब यूरो) का जुर्माना 5 दिसंबर 2012 को लगाया. इन्हें कैथोड-रे ट्यूब्स की कीमत बढ़ाने का दोषी पाया गया. कैथोड-रे ट्यूब्स का प्रयोग फ्लैट टीवी स्क्रीन और कंप्यूटर मॉनीटर बनाने में किया जाता है. यूरोपीय आयोग के इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा जुर्माना है.
यूरोपीय आयोग ने यूरोप और एशिया की इन कंपनियों को वर्ष 1996 से वर्ष 2006 के मध्य साठगांठ कर कीमत तय करने का दोषी पाया. टीवी और कंप्यूटर स्क्रीन की लागत में कैथोड-रे ट्यूब्स की 50-70 प्रतिशत तक हिस्सेदारी होती है.
यूरोप में कारोबार करने वाली कंपनियों को इस तरह की गतिविधियों की सख्त मनाही है. इनमें सबसे ज्यादा 31.34 करोड़ यूरो (करीब 2238 करोड़ रुपए) का जुर्माना डच कंपनी फिलिप्स पर लगाया गया. इसके बाद दक्षिण कोरियाई कंपनी एलजी पर 29.56 करोड़ यूरो और पैनासोनिक पर 15.75 करोड़ यूरो का जुर्माना, सैमसंग एसडीआई को 15.08 करोड़ यूरो, जापानी कंपनी तोशिबा कॉर्प को 2.8 करोड़ यूरो और फ्रांस की टेक्नीकलर को इस मामले में 3.86 करोड़ यूरो का जुर्माना लगाया गया.
इससे पूर्व आयोग ने वर्ष 2008 में साठगांठ से कारों के शीशे के दाम बढ़ाने पर सबसे बड़ा 1.38 अरब यूरो का जुर्माना लगाया था.
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