राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2009-10 में भारत में गरीबी का अनुपात घटकर 29.8 प्रतिशत हो गया. जबकि वर्ष 2004-05 में यह अनुपात 37.2 प्रतिशत था. योजना आयोग ने यह रिपोर्ट नई दिल्ली में 19 मार्च 2012 को जारी की. वित्तवर्ष 2009-10 में देश में गरीबों की कुल संख्या 37.47 करोड़ हो गई. जो वर्ष 2004-05 में 40.72 करोड़ थी.
रिपोर्ट में वर्ष 2004-05 से वर्ष 2009-10 के बीच शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का अनुपात अधिक तेजी से घटा. साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का अनुपात 8 प्रतिशत घटकर 41.8 प्रतिशत की जगह 33.8 प्रतिशत पर और शहरी इलाकों में गरीबी 4.8 प्रतिशत घटकर 20.9 प्रतिशत पर आ गई, जो वर्ष 2004-05 में 25.7 प्रतिशत थी.
हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तराखंड में गरीबों का अनुपात 10 प्रतिशत से भी अधिक गिरा. इस दौरान पूर्वोत्तर राज्यों-असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में गरीबी बढ़ी. बिहार, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत बड़े राज्यों में गरीबी के अनुपात, विशेष तौर पर ग्रामीण इलाकों में गरीबी में कमी तो आई है पर यह बहुत ही कम है.
योजना आयोग का गरीबी का अनुमान तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाई गई पद्धिति पर आधारित है, जिसमें भोजन में कैलोरी की मात्रा के अलावा परिवारों द्वारा स्वास्थ्य और शिक्षा पर किया जाने वाले खर्च भी गौर किया गया है.
धार्मिक समूहों के आधार पर की गई गणना में सिख आबादी में गरीबों का अनुपात ग्रामीण इलाकों में 11.9 प्रतिशत रहा. ग्रामीण इलाकों में सिखों में अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में गरीबो का अनुपात सबसे कम है. शहरी इलाकों में इसाइयों में गरीबों का अनुपात 12.9 प्रतिशत रहा जो शहरी इलाकों में अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में सबसे कम है.
ग्रामीण इलाके में मुसलमानों में गरीबों का अनुपात जिन राज्यों में सबसे अधिक है उनमें असम (53.6 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (44.4 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (34.4 प्रतिशत) और गुजरात (31.4 प्रतिशत) शामिल हैं. शहरी इलाकों में अखिल भारतीय स्तर पर मुसलमानों में गरीबी का अनुपात सबसे अधिक 33.9 प्रतिशत है. इसी तरह शहरी इलाकों में राजस्थान (29.5 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (49.5 प्रतिशत), गुजरात (42.4 प्रतिशत), बिहार (56.5 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (34.9 प्रतिशत) में मुसलमानों की गरीबी का अनुपात उंचा है.
सामाजिक आधार पर ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जनजातियों में गरीबी का अनुपात 47.4 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 42.3 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग में गरीबी का अनुपात 31.9 प्रतिशत है. शहरी इलाकों में अनुसूचित जाति की आबादी में गरीबी का अनुपात 34.1 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 30.4 प्रतिशत तथा अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों में गरीबी का अनुपात 24.3 प्रतिशत है.
बिहार और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में करीब दो तिहाई अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग गरीबी की रेखा के नीचे रह रहे है. जबकि मणिपुर, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इन वर्गों में गरीबी का अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक है.
बिहार (53.5 प्रतिशत) में सबसे अधिक है. जिसके बाद छत्तीसगढ़ (48.7 प्रतिशत), मणिपुर (47.1 प्रतिशत), झारखंड (39.1 प्रतिशत), असम (37.9 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (37.7 प्रतिशत) का नंबर है.
देश में करीब आधे खेतीहर मजदूर गरीबों की श्रेणी में हैं. ग्रामीण इलाकों में 40 प्रतिशत अन्य मजदूर गरीबी के गर्त में हैं. शहरी इलाकों में अस्थाई मजदूरों में 47.1 प्रतिशत गरीब है.
नियमित वेतन पाने वाले काम पर लगे या वेतनभोगी रोजगार में लगे लोगों में गरीबी का अनुपात सबसे कम है.
कृषि के लिहाज से संपन्न राज्य हरियाणा में 55.9 प्रतिशत खेतिहर मजदूर गरीब हैं जबकि पंजाब में खेतीहर मजदूरों में गरीबी का अनुपात 35.6 प्रतिशत है.
शहरी इलाकों में अस्थाई मजदूरों की गरीबी का अनुपात बिहार (86 प्रतिशत) में सबसे अधिक है जबकि असम में 89 प्रतिशत, ओडिशा में 58.8 प्रतिशत, पंजाब में 56.3 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 67.6 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 53.7 प्रतिशत है.
ग्रामीण इलाकों में देखा गया है कि जिन परिवारों की जिम्मेदारी अल्पवयस्कों पर होती है उनके करीब का अनुपात 16.7 प्रतिशत है जबकि जिन परिवारों की मुखिया महिलाएं और वरिष्ठ नागरिक हैं उनमें गरीबी का अनुपात क्रमश: 29.4 प्रतिशत और 30.3 प्रतिशत है. शहरी इलाकों में इन अल्पवयस्कों द्वारा चलाए जाने वाले परिवारों में गरीबी का अनुपात 15.7 प्रतिशत है जबकि महिलाओं और नागरिकों द्वारा चलाए जाने वाले परिवारों में गरीबी का अनुपात क्रमश: 22.1 प्रतिशत और 20 प्रतिशत है जबकि कुल गरीबी का अनुपात 20.9 प्रतिशत है.
ग्रामीण इलाकों में जिन परिवारों में प्राथमिक और निम्न शिक्षा प्राप्त लोग हैं उनमें सबसे अधिक गरीबी है जबकि जिन परिवारों में माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा प्राप्त लोग हैं वे बेहतर हालत में हैं.
बिहार और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक और निम्नतर स्तर की शिक्षा वाले दो तिहाई परिवार गरीब हैं जबकि उत्तर प्रदेश में यह अनुपात 46.8 प्रतिशत और ओडिशा का अनुपात 47.5 प्रतिशत है. लगभग यही रुझान शहरी इलाकों में दिखा.
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