हरियाणा के जूनियर बेसिक ट्रेंड (जेबीटी) शिक्षक भर्ती घोटाले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोकदल के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला सहित 55 लोगों को न्यायालय ने 16 जनवरी 2013 को दोषी करार दिया. ओमप्रकाश चौटाला को न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया. दिल्ली के रोहिणी में स्थित सीबीआई के विशेष न्यायालय ने यह निर्णय दिया. इस मामले में 22 जनवरी 2013 को दोषियों के लिए सजा निर्धारित की जानी है.
दोषियों में आईएएस अधिकारी व तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार और हरियाणा के मुख्यमंत्री के तत्कालीन विशेष कार्य अधिकारी विद्याधर व विधायक शेर सिंह बड़शामी भी शामिल हैं. शेर सिंह बड़शामी घोटाले के समय मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार थे. रोहिणी न्यायालय स्थित सीबीआई के विशेष न्यायाधीश विनोद कुमार ने पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व संजीव कुमार को आपराधिक साजिश रचने व भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धाराओं के तहत दोषी करार दिया, जबकि अजय चौटाला, विद्याधर व बड़शामी को आपराधिक साजिश रचने का दोषी पाया. इसके अलावा अन्य आरोपियों को आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, नकली दस्तावेजों का प्रयोग और दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ आदि अपराध का दोषी करार दिया. मामले में सुनवाई के दौरान 6 आरोपियों की मौत हो गई थी, जबकि 1 को आरोपमुक्त कर दिया गया.
क्या था मामला ?
ओमप्रकाश चौटाला पर आरोप था कि उन्होंने हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए शिक्षकों की भर्ती की जिम्मेदारी कर्मचारी चयन आयोग से लेकर जिला स्तर पर बनाई गई कमेटी को सौंपने का निर्देश दिया था. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई ने जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच वर्ष 2003 में शुरू की. शिक्षकों की नियुक्ति में बरती गई अनियमितताओं का आरोप सामने आने के बाद सीबीआई ने जनवरी 2004 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला सहित कुल 62 लोगों के विरुद्ध मामला दर्ज किया. जांच एजेंसी ने वर्ष 2008 में आरोपियों के विरुद्घ न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल किया. आरोपपत्र के अनुसार वर्ष 1999-2000 में राज्य के 18 जिलों में हुई 3206 जेबीटी शिक्षकों की भर्ती के मामले में मानदंडों को ताक पर रखकर मनचाहे अभ्यर्थियों की बहाली की गई. इसके लिए शिक्षकों की भर्ती की जिम्मेवारी कर्मचारी चयन आयोग से लेकर जिला स्तर पर बनाई गई चयन कमेटी को सौंपी गई थी. इसने फर्जी साक्षात्कार के आधार पर चयनित अभ्यर्थियों की सूची तैयार की.इसके लिए जिला स्तरीय चयन कमेटी में शामिल शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर मनचाहे अभ्यर्थियों के चयन के लिए दिल्ली के हरियाणा भवन व चंडीगढ़ के गेस्ट हाउस में बैठकों में दबाव भी बनाया गया था.
कैसे सामने आया घोटाला ?
यह घोटाला वर्ष 1999 से 2000 के मध्य का है, जिसमें 3206 से अधिक शिक्षकों की भर्ती की गई थी. शिक्षा विभाग के ही एक आईएस अधिकारी संजीव कुमार ने वर्ष 2003 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दर्ज की, जिसके बाद जांच सीबीआई को सौंप दी गई. जेबीटी भर्ती में ओम प्रकाश चौटाला पर लिस्ट बदलवाने का आरोप था, जो अदालत में साबित हो गया. इस केस में कुल 148 सरकारी गवाह थे, जिनमें से 67 की गवाही अदालत में हुई और यह साबित हुआ कि जेबीटी भर्ती में नौकरी पाने वाले हर व्यक्ति से 3 से 5 लाख रुपए की रिश्वत ली गई थी.
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