भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है। वहीं, लोकतंत्र के मामले में यह दुनिया का सबसे बड़ा देश है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है, जो कि 2 साल 11 महीने और 18 दिन में बनकर तैयार हुआ था। संविधान के अनुच्छेद 75 से 78 पर गौर करें, तो हमें प्रधानमंत्री जैसे शक्तिशाली पद के बारे में पढ़ने को मिलता है।
भारत में यह पद सरकार का मुखिया होता है, जिसे प्रमुख कार्यकारी के तौर पर भी जाना जाता है। देश में भले ही सभी फैसले राष्ट्रपति के नाम पर होते हैं, लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री द्वारा ही अमलीजामा पहनाया जाता है। हमारे देश में अभी तक कुल 14 प्रधानमंत्री रहे हैं। हालांकि, क्या आप ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में जानते हैं, जिन्हें भीष्म पितामह के तौर पर भी जाना जाता है। कौन हैं वह प्रधानमंत्री और क्या है इसके पीछे का कारण, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
किस प्रधानमंत्री को ‘भीष्म पितामह’ कहा जाता है
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि किस पीएम को ‘भीष्म पितामह’ कहा जाता है। आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को ‘भीष्म पितामह’ के नाम से भी जाना जाता है।
किसने दी थी यह उपाधि
अटल बिहारी वाजपेयी को ‘भीष्म पितामह’ की उपाधि किसी और ने नहीं, बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दी थी। उन्होंने राज्यसभा में एक विदाई भाषण के दौरान आदरपूर्वक अटल बिहारी वाजपेयी को ‘भीष्म पितामह’ कहा था।
क्यों कहा जाता है ‘भीष्म पितामह’
अटल बिहारी वाजपेयी को भीष्म पितामह कहने के पीछे अलग-अलग कारण थे। इसमें सभी दलों के बीच उनकी स्वीकार्यता, गठबंधन के रचयिता और उनकी नैतिकता शामिल थी, जो कि इस प्रकार हैः
सभी दलों में सम्मान
अटल बिहारी वाजपेयी को एक अजातशत्रु नेता के तौर पर जाना जाता है। महाभारत जैसे महाकाव्य में भीष्म पितामह को लेकर दिखाया गया है कि उनका सम्मान कौरव और पांडवों द्वारा किया जाता था। इसी प्रकार अटल बिहारी वाजपेयी का सम्मान सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष में भी था। उनकी बातों को विरोधी दलों में शामिल प्रमुख नेता भी गंभीरता और सम्मान के साथ सुना करता थे।
गठबंधन की राजनीति का दिखाया रास्ता
अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत में गठबंधन सरकार का नया रास्ता बनाया था। उन्होंने अपनी गठबंधन कला से 20 से अधिक अलग-अलग विचारधाराओं वाली राजनीतिक पार्टियों को एक साथ जोड़ा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकर बनाई। उनकी छवि ऐसे व्यक्ति के तौर पर थी, जो कि परिवार का मुखिया होने के नाते अलग-अलग विचारों वाले व्यक्तियों को एक साथ जोड़कर चलता है।
नैतिकता से बनी पहचान
अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी नैतिकता के लिए भी जाना जाता था। साल 1996 में सिर्फ 13 दिनों में सरकार गिरने पर दिया गया उनका भाषण आज भी इतिहास में दर्ज है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया था कि वह जोड़-तोड़कर सत्ता हथियाना नहीं चाहते। उनके इस विचार की तुलना भीष्म पितामह के अटल संकल्प से की जाती है।
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