भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 1 अप्रैल 2014 के अपने एक फैसले में कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार द्वारा अनुमोदन देने में किसी भी त्रुटि या अनियमितता के मामले में अपने अधिकारियों के खिलाफ ट्रायल की वजह से आपराधिक कार्यवाही को खारिज करने का अधिकार नहीं हो सकता.
भारत के प्रधान न्यायधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय की एक बेंच ने कहा कि सरकारी अधिकारियों को इसका अनुचित लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
यह आदेश 3 मार्च 2011 और 23 मार्च 2012 को बिहार सरकार द्वारा दो याचिकाओं के संदर्भ में बेंच ने पारित किया है जिसमें पटना उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को यह कह कर खारिज कर दिया गया था कि मंजूरी राज्य के विधि विभाग ने दी है न कि उनके मूल विभाग द्वारा.
मंजूरी में होने वाली किसी भी त्रुटि, चूक या अनियमितता सक्षम न्यायालय द्वारा पारित किसी भी निर्णय, वाक्य या आदेश को तब तक प्रभावित नहीं करेगा जबतक कि न्यायालय की राय में न्याय की विफलता पैदा की गई हो. इससे संबंधित विशिष्ट प्रावधान भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 19 (3) और आपराधिक प्रकिया संहिता की धारा 465 में है.
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