हिमालय की जलधारण क्षमता (इनफिल्टेशन कैपेसिटी) में लगातार कमी आ रही. अल्मोड़ा स्थित कुमाऊं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जुलाई 2014 के चौथे सप्ताह में इससे सम्बंधित घोषणा की. वैज्ञानिकों द्वारा किये गए शोध के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र की धरती की जलधारण क्षमता 30 वर्ष पहले 35 प्रतिशत थी, जो अब घटकर मात्र 12 प्रतिशत रह गई है. इसके पीछे मुख्य कारण अनियोजित नगरीय विकास, अनियंत्रित कटान, पहाड़ों का अवैज्ञानिक दोहन तथा हरियाली का अंधाधुंध दोहन है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमालय की जलधारण क्षमता में आई कमी के कारण हिमालयी क्षेत्र की 88 प्रतिशत बरसाती पानी बर्बाद हो जाती है. जिसके कारण वर्षाकाल में इस क्षेत्र के जंगलों से कई टन उपजाऊ मिट्टी का भी क्षरण हो रहा. इस शोध के अनुसार, 45 वर्ष पूर्व तक कुमाऊं की कोसी नदी का दायरा 225.6 किमी था जो अब सिकुड़कर मात्र 41.5 किमी रह गया है. यही हाल गोमती, गगास, रामगंगा, गौला नदियों समेत इनकी सहायक नदियों का भी है.
विदित हो कि स्वस्थ जंगल-क्षेत्र की जलधारण क्षमता 100 मिमी वर्षा पर 90 प्रतिशत से अधिक मानी जाती है.
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