राजपूत वंश के दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक विकास

‘राजपूत’ शब्द संस्कृत के ‘राज-पुत्र’ शब्द से लिया गया है जिसका मतलब “एक राजा का पुत्र” होता है। राजपूत अपने साहस, ईमानदारी और राजशाही के लिए जाने जाते थे ।ये वो योद्धा थे जो युद्ध मे लड़े और प्रशासनिक क्रियाओं का भी ध्यान रखा। राजपूतों का उदय पश्चिमी, पूर्वी, उत्तरी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सो से हुआ था। छठवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक राजपूत विख्यात थे। राजपूतों ने बीसवीं शताब्दी तक राजस्थान और सौराष्ट्र के शानदार राज्यों मे पूर्ण बहुमत मे शासन किया।

Nov 6, 2015, 16:45 IST

राजपूत आक्रामक और बहादुर लड़ाके थे, जिसे वे अपने धर्म के रूप मे मानते थे। उन्होने गुणों और आदर्शो को महत्व दिया जो बहुत उच्च मूल सिद्धान्त थे। वे बड़े दिल वाले और उदार थे, वे अपने मूल और वंश पर गर्व अनुभव करते जो उनके लिए सर्वोच्च था। वे बहादुर, अहंकारी और बहुत ही ईमानदार कुल के थे जिन्होने शरणार्थियों और अपने दुश्मनों को पनाह भी दी थी।

लोगो के सामाजिक और सामान्य शर्ते:

  • युद्ध विजय अभियान और जीत राजपूत समाज और संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता थी।
  • समाज बुरी तरह परेशान था क्यूंकि लोगो के रहन सहन के स्तर मे काफी असमानता थी। वे जाति और धर्म प्रणालियों मे विश्वास रखते थे। 
  • मंत्री, अधिकारी, सामंत प्रमुख उच्च वर्ग के थे, इसलिए उन्होने धन जमा करने के  विशेषाधिकार का लाभ उठाया और वे विलासिता और वैभव मे जीने के आदी थे ।
  • वे कीमती कपड़ो, आभूषणों और सोने व चांदी के जेवरों मे लिप्त थे। वे कई मंजिलों वाले घर जैसे महलों मे रहा करते थे।
  • राजपूतों ने अपना गौरव अपने हरम और उनके अधीन कार्य करने वाले नौकरो की संख्या मे दिखाया।
  • दूसरी तरफ किसान भू-राजस्व और अन्य करों के बोझ तले दब रहे थे जो सामंती मालिको के द्वरा निर्दयतापूर्वक वसूले जाते थे या उनसे बेगार मजदूरी करवाते थे।

जाति प्रथा:

  • निचली जातियों को सीमान्ती मालिकों की दुश्मनी का सामना करना पड़ा जो उन्हे हेय दृष्टि से देखते थे।
  •  अधिकांश काम करने वाले जैसे बुनकर, मछुवारे, नाई इत्यादि साथ ही आदिवासियों के साथ उनके मालिक बहुत ही निर्दयी बर्ताव करते थे। 
  • नई जाति के रूप मे ‘राजपूत’ छवि निर्माण मे अत्यंत लिप्त थे और सबसे अहंकारी थे जिसने जाति प्रथा को और अधिक मजबूत बना दिया था।

महिलाओं की स्थिति:

यद्यपि महिलाओं का सम्मान अत्यधिक स्पष्ट था और जहा तक राजपूतो के गौरव की बात थी तो वो अभी भी एक अप्रामाणिक और विकलांग समाज मे रहते थे।  

  • निम्न वर्ग की राजपूत महिलाओं को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था। हालांकि, उच्च घरानो के परिवारों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की। महिलाओं के लिए कानून बहुत कटीले थे।
  • उन्हे अपने पुरुषो और समाज के अनुसार उच्च आदर्शो का पालन करना पड़ता था। उन्हे अपने मृतक पतियों के शव के साथ खुशी से अपने आप को बलिदान करना पड़ता था।
  • यद्यपि कोई पर्दा प्रथा नहीं थी। और ‘स्वयंवर’ जैसी शादियों का प्रचलन कई शाही परिवारों मे था, अभी भी समाज मे भ्रूण हत्या और बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं देखने को मिलती थी।

शिक्षा और विज्ञान:

राजपूत शासन काल मे केवल ब्राह्मणो और उच्च जाति के कुछ वर्गो को शिक्षित होने / शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त था।

  • उच्च शिक्षा के लिए प्रसिद्ध केंद्र बिहार के नालंदा मे था और कुछ अन्य महत्वपूर्ण केंद्र विक्रमशिला और उदन्दापुर मे थे। इस समय केवल कुछ ही शिक्षा के शैव केंद्र कश्मीर मे विकसित हुये। 
  • धर्म और दर्शन अध्ययन चर्चा के लिए लोकप्रिय विषय थे।
  • इस समय तक भी विज्ञान के ज्ञान का विकास धीमा / शिथिल था, समाज तेजी से कठोर बन गया था, सोच परंपरागत दर्शन तक ही सीमित थी, इस समय के दौरान भी विज्ञान को विकसित करने का उचित गुंजाइश या अवसर नही मिला।   

वास्तुकला:

  • राजपूत काफी महान निर्माणकर्ता थे जिनहोने अपना उदार धन और शौर्य दिखाने के लिए किलों, महलो और मंदिरो के निर्माण मे अत्यधिक धन खर्च किया। इस अवधि मे मंदिर निर्माण का कार्य अपने चरम पर पहुँच गया था।
  • कुछ महत्वपूर्ण मंदिरों मे पुरी का लिंगराज मंदिर, जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क मे सूर्य मंदिर है। 
  • खजुराहो, पुरी और माउंट आबू राजपूतों द्वारा बनवाए गए सबसे प्रसिद्ध मंदिर माने जाते है।
  • राजपूत सिचाई के लिए नहरों, बाधों, और जलाशयो के निर्माण के लिए भी जाने जाते थे जो अभी भी अपने परिशुद्धता और उच्च गुणवत्ता के लिए माने जाते है।
  • कई शहरो जैसे जयपुर, जोधपुर, जैसलमर, बीकानेर, के नींव की स्थापना राजपूतों के द्वारा की गई थी, इन शह रों को सुंदर महलों और किलों के द्वारा सजाया गया था जो आज विरासत के शहर के नाम से जाना जाता है।
  •  अट्ठारहवीं शताब्दी मे सवाई जयसिंह के द्वारा बनवाए गए चित्तौड़ के किले मे विजय स्तम्भ, उदयपुर का लेक पैलेस, हवा महल और खगोलीय वेधशाला राजपूत वास्तुकला के कुछ आश्चर्यजनक उदाहरण है।

चित्रकारी/चित्रकला:

  • राजपूतो के कलाकृतियों को दो विद्यालयों के क्रम मे रखा जा सकता है- चित्रकला के राजस्थानी और पहाड़ी विद्यालय।
  • कलाकृतियों के विषय भक्ति धर्म से अत्यधिक प्रभावित थे और अधिकांश चित्र रामायण, महाभारत और राधा और कृष्ण के अलग-अलग स्वभावों को चित्रित करता था।
  • दोनों विद्यालयों की प्रणाली समान है और दोनों ने ही व्यक्तियों के मौलिक जीवन के दृश्यों की व्याख्या करने के लिए प्रतिभाशाली रंगो का उचित प्रयोग किया।
Jagran Josh
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Education Desk

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