भारतीय व्यंजनों और प्राकृतिक चिकित्सा का एक अभिन्न अंग, हींग (Asafoetida) को फेरुला अस्सा-फोसेटिडा की मांसल जड़ों से ओलियो- गम राल के रूप में निकाला जाता है.
आखिर यह चर्चा में क्यों
CSIR की घटक प्रयोगशाला, इंस्टीच्यूट ऑफ़ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (IHBT-Institute of Himalayan Bioresource Technology), ने पहली बार भारत के हिमालय क्षेत्र में हींग (Asafoetida) की खेती को शुरू करके इतिहास बनाया है.
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) - हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित हिमालयन बायोरसोर्स इंस्टीट्यूट (IHBT) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि उन्होंने लाहौल और स्पीति के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र में फेरूला हींग के 800 पौधे लगाए हैं. इससे किसानों के खेती के तरीकों में एक ऐतिहासिक बदलाव आया है.
यहाँ के किसानों ने इस बदलाव के कारण ठंडे रेगिस्तानी परिस्थितियों में बड़े पैमाने पर बंजर पड़ी जमीन का सदुपयोग करने के उद्देश्य से अब हींग की खेती को अपनाया है. CSIR-IHBT ने इसके लिए हींग के बीज और क्रषि की तकनीकों को विकसित किया.
भारत में फेरूला हींग उगाने की पायलट परियोजना से देश के खाद्य पदार्थों को अपने घर में उगाए जाने वाले मसाले का स्वाद लेने में मदद मिल सकती है.
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आइये हींग की खेती में CSIR-IHBT के प्रयासों के बारे में जानते हैं
- CSIR-IHBT ने भारत में हींग की खेती शुरू करने के उद्देश्य से अक्टूबर 2018 में CSIR- नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (ICAR-NBPGR), नई दिल्ली के माध्यम से ईरान से लाये गये हींग बीजों के तकरीबन छह गुच्छों का इस्तेमाल शुरू किया था.
- CSIR-IHBT के निदेशक डॉ. संजय कुमार ने 15 अक्टूबर, 2020 को लाहौल घाटी के क्वारिंग नाम के गांव में एक किसान के खेत में हींग के पहले पौधे की रोपाई की.
- इस बात की पुष्टि ICAR-NBPGR ने की कि पिछले तीस वर्षों में देश में हींग जो कि फेरुला अस्सा-फोटिडा है के बीजों के इस्तेमाल करने का यह पहला प्रयास था.
- CSIR-IHBT ने NBPGR की निगरानी में हिमाचल प्रदेश स्थित सेंटर फॉर हाई अल्टीट्यूड बायोलॉजी (CeHAB) रिबलिंग, लाहौल और स्पीति में हींग के पौधे उगाए.
- हींग के पौधे को उगाने के लिए ठंडी और शुष्क परिस्थितियां अनुकूल मानी जाती हैं और इसकी जड़ों में ओलियो-गम नाम के राल के पैदा होने में लगभग पांच साल लगते हैं. इसी कारण से भारत के हिमालय क्षेत्र के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र को इसके लिए उपयुक्त माना गया.
भारत हींग का आयात अधिकतर कहां से करता है?
CSIR-IHBT, पालमपुर के निदेशक, संजय कुमार के अनुसार "भारत अफगानिस्तान, ईरान और उजबेकिस्तान से सालाना 1,540 टन कच्ची हींग आयात करता है और इस पर लगभग Rs 942 करोड़ प्रति वर्ष खर्च करता है. इसलिए भारत के लिए उत्पादन में आत्मनिर्भर बनना महत्वपूर्ण है."
आइये अब हींग (Asafoetida) के बारे में जानते हैं
- प्रमुख मसालों में से एक हींग को माना जाता है और यह भारत में उच्च मूल्य की एक मसाला फसल है. भारतीय रसोई का यह एक प्रमुख मसाला है.
- इसे फेरुला अस्सा-फोटिडा नाम के पौधों से प्राप्त किया जाता है. कच्ची असाफोटिडा या हींग को फेरुला अस्सा-फोसेटिडा की मांसल जड़ों से ओलियो- गम राल के रूप में निकाला जाता है.
- हींग के पौधे या फसल के लिए ठंडी और शुष्क परिस्थितियों को अनुकूल माना जाता है.
- फेरुला की दुनिया में लगभग 130 प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हींग के उत्पादन के लिए फेरुला अस्सा-फ़ेटिडिस का ही उपयोग किया जाता है.
- हींग काबुली सुफेद (दूधिया सफेद हींग) और हींग लाल (लाल असाफोटिडा) बाजार में उपलब्ध दो प्रकार के राल हैं. सफेद या पीली किस्म की हींग पानी में घुलनशील होती है, जबकि गहरे या काली किस्म की हींग तेल में घुलनशील होती है.
मदुरै के निर्माता पीसी पेरुंगयम ( PC Perungayam) के सीजे शंकर (CJ Shankar) के अनुसार वाणिज्यिक रूप से बेची जाने वाली हींग को गेहूं के आटे और गम अरेबिक के साथ मिलाकर राल के तीखे स्वाद को ठीक किया जाता है. “उपयोग के अनुसार योजक को मिलाने से हींग की सांद्रता को समायोजित करने में मदद मिलती है. उदाहरण के लिए, अचार या दवाओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले में हींग और अन्य पदार्थ के इस्तेमाल के लिए हींग अलग होती है.
पीसी पेरुंगायम (PC Perungayam), 1956 में शुरू की गई थी और केरल और कर्नाटक में इसकी शाखाएँ हैं. यह कई भारतीय परिवार संचालित व्यवसायों में से एक है जो इस मसाले को संसाधित करने में विशिष्ट है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में पहली बार शुरू हुई महंगे मसाले हींग की खेती से भारत आत्मनिर्भरता की और बड़ेगा और नए विकल्प खुलेंगे.
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