भारत में यदि आर्थिक विकास की बात करें, तो आर्थिक विकास के पहिये को रफ्तार देने के लिए निजी और सरकारी, दोनों ही प्रमुख क्षेत्र हैं। इन दोनों क्षेत्रों में देश के करोड़ों लोग नौकरी कर रहे हैं।
हर साल भारत के शैक्षणिक संस्थानों से अलग-अलग योग्यता और कौशल के साथ युवा निकलते हैं और अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देते हैं। यही वजह है कि इन नौकरियों को अलग-अलग नाम भी दिया गया है, जिसे हम ब्लू, व्हाइट या ब्लैक कॉलर आदि जैसे शब्दों से जानते हैं।
भारत के एक बड़ा वर्ग इन विभिन्न प्रकार की कॉलर जॉब्स में हैं। ऐसे में इस लेख के माध्यम से हम विभिन्न प्रकार की कॉलर जॉब्स के बारे में जानेंगे।
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यहां आप विभिन्न कॉलर जॉब की सूची और उनके अर्थ को समझ सकते हैं। इससे छात्रों को विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में अक्सर पाए जाने वाले इन शब्दों का अर्थ समझने में मदद मिलेगी।
ब्लैक कॉलर वर्कर: इसका उपयोग खनन या तेल उद्योग में श्रमिकों के संबंध में किया जाता है या कभी-कभी उन लोगों को संदर्भित करने के लिए भी किया जाता है, जो कालाबाजारी गतिविधियों में शामिल होते हैं।
ब्लू कॉलर वर्कर: यह शब्द श्रमिक वर्ग के उस सदस्य को संदर्भित करता है, जो शारीरिक श्रम करता है और प्रति घंटा वेतन कमाता है।
गोल्ड कॉलर वर्कर: डॉक्टर, वकील और वैज्ञानिक जैसे अत्यधिक कुशल जानकार लोगों और ऐसे कम वेतन वाले श्रमिकों को भी संदर्भित करता है, जिन्हें माता-पिता का समर्थन भी मिलता है।
ग्रे कॉलर वर्कर: इसका तात्पर्य उन लोगों से है, जो सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी काम करते हैं। उदाहरण के लिए स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर या आईटी पेशेवर।
ग्रीन कॉलर वर्कर: वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों, जैसे वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर, ग्रीनपीस और सोलर पैनल में कार्यरत लोग।
ओपन कॉलर वर्कर: एक ऐसे कर्मचारी को संदर्भित करता है, जो इंटरनेट के माध्यम से घर से काम करता है।
पिंक कॉलर वर्कर: उन श्रमिकों को संदर्भित करता है, जो लाइब्रेरियन और रिसेप्शनिस्ट जैसी कम वेतन वाली नौकरियों में कार्यरत हैं।
व्हाइट कॉलर वर्कर: एक वेतनभोगी पेशेवर के संबंध में है, जो सामान्य अर्थ में कार्यालय कर्मचारियों और प्रबंधन को संदर्भित करता है।
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