मुगल साम्राज्य भारत में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले साम्राज्यों में से एक था। इसकी स्थापना वर्ष 1526 में हुई थी, जब बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोधी को हराया था।
यहां हम मुगलों द्वारा अपने शासनकाल के दौरान जीती गई 10 प्रमुख लड़ाइयों पर नजर डालेंगे।
मुगलों द्वारा जीती गई 10 प्रमुख लड़ाइयां
यहां हम उन 10 प्रमुख लड़ाइयों पर नजर डालेंगे, जिन्होंने भारत में मुगल साम्राज्य की नियति को आकार दिया।
पानीपत की पहली लड़ाई
पानीपत की पहली लड़ाई वर्ष 1526 में बाबर और इब्राहिम लोधी (जो उस समय दिल्ली का राजा था) के बीच लड़ी गई थी। इस युद्ध ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की और यह मुगलों द्वारा जीती गई सबसे महत्वपूर्ण लड़ाइयों में से एक है।
यह युद्ध बाबर द्वारा बारूदी हथियारों और तोपों के प्रयोग के लिए भी जाना जाता है। यह ऐसी सैन्य शक्ति का पहला उदाहरण था, जिसने दिल्ली सल्तनत को आश्चर्यचकित कर दिया था।
खानवा की लड़ाई
खानवा का युद्ध भारत में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए मुगलों द्वारा लड़े गए सबसे निर्णायक युद्धों में से एक था। यह युद्ध राणा सांगा और बाबर के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध भारत में मुगलों के शासन की स्थापना में सहायक था।
खानवा का युद्ध वर्ष 1527 में लड़ा गया था और इस युद्ध का उद्देश्य बाबर को भारत से बाहर निकालना था; बाबर के लिए इसका उद्देश्य भारतीय राज्यों पर प्रभुत्व हासिल करना था।
घाघरा का युद्ध
घाघरा का युद्ध वर्ष 1529 में बाबर की सेनाओं और बंगाल के सुल्तान महमूद लोदी और सुल्तान नुसरत शाह की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। इस जीत से भारत में अफगानों का दायरा और कम हो गया तथा पूर्वी भारत में मुगल नियंत्रण स्थापित हो गया।
पानीपत की दूसरी लड़ाई
पानीपत की दूसरी लड़ाई वर्ष 1556 में नव-राजित सम्राट अकबर और दिल्ली के हिंदू राजा हेमू की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी। हेमू ने आगरा और दिल्ली पर कब्जा कर लिया था और बैरम खान के नेतृत्व में मुगलों ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को हरा दिया था।
इस जीत ने भारत में अकबर के प्रभुत्व को चिह्नित किया।
चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी
चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी वर्ष 1567 में हुई थी। इसका कारण यह था कि मेवाड़ के महाराणा ने उन्हें सम्राट मानने से इनकार कर दिया था।
घेराबंदी पूरी करने में छह महीने लगे और इस प्रकार अकबर के साम्राज्य का और विस्तार हुआ।
रणथंभौर की घेराबंदी
अगली घेराबंदी रणथंभौर पर हुई, जहां हाड़ा राजपूत मुगलों को दुश्मन मानते थे और अकबर उन्हें अपने साम्राज्य के लिए खतरा मानता था। इस जीत के परिणामस्वरूप राजपूत राजा राय सुरजन हाड़ा को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
तुकारोई की लड़ाई
तुकारोई का युद्ध मुगलों और बंगाल सल्तनत के बीच लड़ा गया था और बंगाल सल्तनत की हार से उनकी पकड़ कमजोर हो गयी थी। यह घटना वर्तमान ओडिशा के बालासोर के निकट तुकारोई गांव में घटित हुई थी।
हल्दीघाटी का युद्ध
यह मान सिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगलों और मेवाड़ के महाराणा प्रताप के बीच प्रसिद्ध युद्धों में से एक था। इस युद्ध ने महाराणा प्रताप को एक वीर योद्धा के रूप में स्थापित कर दिया, जिसकी कहानियां आज भी सुनाई जाती हैं।
सामुग्राह का युद्ध
यह एक गृह युद्ध था, जो वर्ष 1657 में शाहजहां के बेटों दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच लड़ा गया था। औरंगजेब के साथ उसका छोटा भाई मुराद बक्श भी शामिल हो गया। यह युद्ध दारा शिकोह की हार और औरंगजेब के सम्राट बनने के साथ समाप्त हुआ।
खजवा की लड़ाई
खजवा की लड़ाई वर्ष 1659 में औरंगजेब और शाह सुजा के बीच लड़ी गई थी, जिसने खुद को बंगाल में सम्राट घोषित कर दिया था। इस युद्ध में शाह सुजा की हार हुई, जिसके बाद वह अराकान भाग गया।
औरंगजेब ने शाइस्ता खां को बंगाल का नया नवाब नियुक्त किया।
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