भारत पूरे दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। देश का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है, जिसे 2 साल 11 महीने और 18 दिनों में तैयार किया गया था। संविधान उठाकर देखें, तो अनुच्छेद 74, 75 और 78 में हमें प्रधानमंत्री के पद, नियुक्ति और कार्यों के बारे में उल्लेख मिलता है।
भारत में संसदीय प्रणाली है, ऐसे में प्रधानमंत्री को देश का कार्यकारी प्रमुख माना जाता है। यह केंद्र में मौजूद मंत्रीपरिषद् का प्रमुख होता है। देश में समय-समय पर अलग-अलग प्रधानमंत्री हुए हैं। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि वह कौन-से प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें शांति पुरुष भी कहा जाता था। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्य्म से हम इस बारे में जानेंगे।
भारत में कुल कितने प्रधानमंत्री रहे हैं
भारत में अब तक कुल 14 प्रधानमंत्री रहे हैं। इनमें सबसे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और वर्तमान में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर हैं। वह 2014 से अब तक प्रधानमंत्री पद पर हैं और तीन बार इस पद की शपथ ले चुके हैं।
किस प्रधानमंत्री को कहा जाता था शांति पुरुष
अब सवाल है कि भारत के किस प्रधानमंत्री को शांति पुरुष कहा जाता था। आपको बता दें कि भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में पहचान रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री को शांति पुरुष के रूप में भी जाना जाता था।
क्यों कहा जाता था शांति पुरुष
लाल बहादुर शास्त्री की शांत स्वभाव, उच्च नैतिक मूल्य और अहिंसा में उनके विश्वास के कारण उनकी शांति पुरुष के रूप में छवि थी। उनकी यह पहचान मुख्य रूप से भारत-पाक के 1965 के युद्ध के बाद बनी।
शास्त्री ने यूरोपीय संघ के ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खान के साथ ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए। उनका उद्देश्य युद्ध के बजाय दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना था, जिससे दोनों देशों के संसाधनों का उपयोग देश की गरीबी मिटाने में किया जा सके।
कब से कब तक रहे प्रधानमंत्री
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद से चुनाव जीता और लोकसभा पहुंचे। उन्होंने जून 1964 से जनवरी 1966 तक प्रधानमंत्री के रूप में काम किया।
सादगी के लिए जाने जाते थे शास्त्री
लाल बहादुर शास्त्री को उनके सादगी के लिए भी जाना जाता था। वह अक्सर शाही खर्च से बचा करते थे। कुछ स्रोतों के मुताबिक, वह अपनी जरूरत के हिसाब से ही वेतन लिया करते थे। वहीं, प्रधानमंत्री के रूप में मिली अपनी कार का इस्तेमाल वह निजी रूप से नहीं करते थे। इस संबंध में एक मशहूर किस्सा है कि एक बार उनके बेटे सुनील शास्त्री द्वारा उनकी आधिकारिक कार का इस्तेमाल किया गया था। इसके बदले में शास्त्री ने पेट्रोल का खर्च अपनी निजी बचत से निकालकर सरकारी खजाने में जमा करवाया था। उनका मानना था कि सरकारी संपत्ति जनता की अमानत है।
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