इतिहास में बहुत-से युद्ध लड़े गए, जिनसे भारत पर प्रभाव पड़ा। इन्हीं युद्धों में से एक है पानीपत का युद्ध, जो इतिहास के युद्धों में से प्रसिद्ध युद्धों में से एक है। इस युद्ध को हम पानीपत की जंग या पानीपत का लड़ाई के नाम से भी जानते हैं। अब सवाल है कि आखिर पानीपत का युद्ध क्यों लड़ा गया था और इसे किसने जीता था। क्या आप इस बारे में जानते हैं। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
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पानीपत में कुल कितने युद्ध हुए
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि पानीपत में कुल कितने युद्ध हुए हैं। आपको बता दें कि पानीपत में कुल तीन युद्ध हुए हैं। इसमें पानीपत का पहला युद्ध 1526, पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 और पानीपत का तीसरा युद्ध 1761 में हुआ था।
किसके बीच हुआ था पानीपत का पहला युद्ध
अब सवाल है कि पानीपत का पहला युद्ध किसके बीच हुआ था। आपको बता दें कि पानीपत का पहला युद्ध दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी और काबुल के तैमूरी शासक जहीर उद्दीन मोहम्मद बाबर के बीच उत्तर भारत में सत्ता को लेकर हुआ था।
पानीपत के युद्ध में लड़े थे इतने सैनिक
पानीपत के युद्ध में बाबर की तरफ से मौजूद सैनिकों की संख्या 15 हजार से 20 हजार तक बताई जाती है। इसके साथ ही बाबर अपने साथ तोप और बारूद लेकर भी आया था। वहीं, लोदी की सेना में सैनिक बलों की संख्या अधिक थी, लेकिन लोदी के पास तोप नहीं थी, बल्कि हाथियों की संख्या अधिक थी।
पहली बार इस्तेमाल की गई थी तोप और बारूद
पानीपत की पहली लड़ाई ऐसी लड़ाई थी, जिसमें पहली बार तोप और बारूद का इस्तेमाल किया गया था। क्योंकि, इससे पहले युद्ध में हाथियों और अस्त्र व शस्त्र के साथ युद्ध लड़े जाते थे।
तुलगुमा पद्धति का किया गया था इस्तेमाल
पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर की ओर से तुलगुमा पद्धति का इस्तेमाल किया गया था। इसके तहत कुछ सैनिकों को सामने से भेजा गया था, जबकि कुछ सैनिकों को बाएं और दाएं से भेजा गया था। इसके साथ ही इस युद्ध में उस्मानी विधि का भी इस्तेमाल किया गया था, जिसके तहत तोपों को सजाया जाता है। यह कला तुर्क की कला है। वहीं, तोपों के आगे बैलगाड़ी को चलाया जाता था, जो कि जानवर की खाल से बनी रस्सी से बंधी होती थीं और इनके पीछे तोपों को छिपाकर चलाया जाता था।
कौन जीता था पानीपत का पहला युद्ध
अब सवाल है कि पानीपत का पहला युद्ध किसने जीता था। आपको बता दें कि पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी मौके पर ही मारा गया था, जिसके बाद बाबर ने उत्तर भारत में अपनी नींव को मजबूत कर लिया था। यही वह समय था, जब भारत में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी थी।
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