जब भी कभी न्यायधीश या जज फांसी की सजा सुनाता है तो अपने पेन की निब तोड़ देता है. फांसी की सजा कानून में सबसे बड़ी सजा है और यह रेयररेस्ट ऑफ द रेयर मामलों में ही दी जाती हैं. क्योंकि इस सजा की वजह से व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाता है और साथ ही ऐसी उम्मीद भी की जाती है कि फिर से कोई भी देश में किसी भी प्रकार का जघन्य अपराध ना करें.
आइये देखते हैं की आखिर जज फांसी की सजा सुनाने के बाद पेन की निब क्यों तोड़ देता है.
- यदि हम भारत के इतिहास पर गौर करें, तो हम सभी जानते हैं कि भारत पर अंग्रेजों द्वारा शासन हुआ करता था. जिन्होंने हमारे देश में अपने कानून और व्यवस्था को लागू किया था. जिस तरह से उन्होंने काम किया और उनकी व्यवस्था का प्रबंधन किया, आज़ादी के इतने वर्षों के बाद भी, हम अपने वर्तमान संवैधानिक कार्यों में उनकी कुछ पुरानी संस्कृति का पालन कर रहें हैं. जिनमें से एक जज के पेन तोड़ने की प्रक्रिया भी शामिल है. यह एक सिंबॉलिक कार्य को दर्शाती है.
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- सैद्धांतिक तौर पर देखे तो मृत्युदण्ड किसी भी मुकदमें के समझौते का अंतिम एक्शन होता है.
- जैसा की हम सभ जानते है कि मृत्युदण्ड की सजा ज्यादा संगीन कार्य के लिए दी जाती हैं और तब दी जाती है जब कोई अन्य विकल्प ना बचा हो. इसलिए भी जब इस सजा की वजह से किसी भी व्यक्ति के जीने के अधिकार को चीन लिया जाता है तो जज पेन की निब तोड़ देता है ताकि उसको दुबारा से इस्तेमाल न किया जा सके.
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- सज़ा-ए-मौत एक दुख की बात है, लेकिन कभी-कभी ऐसी सजा देना जरूरी भी हो जाता है और इस सजा को सुनाने के बाद जज पेन की निब को तोड़कर दुःख व्यक्त करता है ताकि किसी भी प्रकार का दोष मन में न रहें.
- क्या आपको पता हैं कि, आपराधिक प्रक्रिया संहिता -1973 में इस तरह के नियम का कोई जिक्र नहीं है, जिससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते है कि पेन की निब तोड़ने की प्रक्रिया एक व्यक्तिगत न्यायाधीश के एकमात्र विश्वास की ही हो सकती है ना कि किसी कानून में दी गई प्रक्रिया.
- उपरोक्त लेख से यह पता चलता है कि जज मृत्युदण्ड देने के बाद पेन की निब क्यों तोड़ देता है और आपराधिक प्रक्रिया संहिता -1973 में इस तरह की प्रक्रिया का कोई भी उल्लेख नहीं हैं.
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