आपातकालीन प्रावधान

Dec 21, 2015, 17:52 IST

भारत में आपातकालीन प्रावधान जर्मनी के संविधान से उधार लिए गए हैं। भारत के संविधान में निम्नलिखित तीन प्रकार की आपात स्थिति की परिकल्पना की गई हैः (i) अनुच्छेद 352– राष्ट्रीय आपातकाल, अनुच्छेद (ii) 356– राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन), (iii) अनुच्छेद 360– वित्तीय आपातकाल इस तीनों ही आपातकालीन स्तिथियों को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के आदेश पर लागू करता है । अनुच्छेद 352 के तहत, अगर राष्ट्रपति युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर देश की सुरक्षा के लिए पैदा हुई स्थिति को गंभीर मानें तो देश में आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।

भारत में आपातकालीन प्रावधान जर्मनी के संविधान से उधार लिए गए हैं। भारत के संविधान में निम्नलिखित तीन प्रकार की आपात स्थिति की परिकल्पना की गई हैः

(i) अनुच्छेद 352– राष्ट्रीय आपातकाल, अनुच्छेद

(ii) 356– राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन)

(iii) अनुच्छेद 360– वित्तीय आपातकाल

इस तीनों ही आपातकालीन स्तिथियों को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के आदेश पर लागू करता है /

राष्ट्रीय आपातकाल

अनुच्छेद 352 के तहत, अगर राष्ट्रपति युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर देश की सुरक्षा के लिए पैदा हुई स्थिति को गंभीर मानें तो देश में आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। आपातकाल पूरे भारत में या उसके किसी हिस्से में घोषित किया जा सकता है। सिर्फ कैबिनेट की लिखित सलाह पर ही राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। आपातकालीन प्रस्ताव को मंजूरी देने के लिए विशेष बहुमत आवश्यक है। एक बाद मंजूरी दे दिए जाने के बाद, आपातकाल छह माह से अधिक के लिए नहीं लगाया जा सकता है। लोकसभा के पास किसी भी वक्त राष्ट्रीय आपातकाल को खत्म करने का अधिकार होता है, अगर लोकसभा के 1/10 सदस्यों से कम ने लोकसभा अध्यक्ष या राष्ट्रपति को लिखित में न दिया हो, अगर सदन का सत्र चल रहा हो, फिर अध्यक्ष या राष्ट्रपति जैसा भी मामला हो, 14 दिनों के भीतर लोकसभा का विशेष सत्र बुलाएंगे और अगर ऐसा प्रस्ताव पारित होता है, तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल को रद्द कर देंगे।

संशोधन

• 38वां संविधान संशोधन अधिनियम 1975: आपातकाल लागू होने के बाद भी विभिन्न परिस्थितियों में राष्ट्रीय आपातकाल लगाने का अधिकार राष्ट्रपति को देता है।

• 42वां संविधान संशोधन अधिनियम 1976:

(i) यह, राष्ट्रीय आपातकाल में संशोधन या बदलने का अधिकार राष्ट्रपति को देता है। मूल संविधान के तहत, सिर्फ लागू करना या पूरी तरह से हटाया जाना संभव है।

(ii) मूल संविधान के तहत, राष्ट्रपति सिर्फ पूरे भारत में राष्ट्रीय आपातकाल लागू कर सकते हैं। इस संशोधन ने उन्हें देश के कुछ हिस्से में आपातकाल लागू करने का अधिकार दिया, जो कि पहले नहीं था ।

• 44वां संविधान संशोधन 1978: इसे कार्यकारिणी द्वारा आपातकाल में मिली शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए लाया गया था।

राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभाव

कार्यकारिणी पर– राज्य सरकारों को बर्खास्त नहीं किया जाएगा, वे काम करना जारी रखेंगे लेकिन वे केंद्र के नियंत्रण में होंगी जो राज्य सरकार को निर्देश देने का अधिकार रखता है और राज्य को उन निर्देशों का पालन करना होगा।

विधानमंडल पर– राज्य विधानमंडल काम करना और कानून बनाना जारी रखेंगे लेकिन संसद के पास राज्य के संबंध में समवर्ती विधायी अधिकार होंगे और संसद द्वारा पारित ऐसा कोई भी कानून, अक्षमता की हद तक, राष्ट्रीय आपातकाल के हटाए जाने के बाद छह माह की समाप्ति पर समाप्त हो जाएगा।

वित्तीय संबंधों पर– राष्ट्रपति केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण को रोक सकते हैं और राज्य एवं केंद्र जिस वजह से आपातकाल घोषित किया गया है, के आधार पर, किसी भी राष्ट्रीय संसाधन का उपयोग कर सकते हैं।

हमारे मौलिक अधिकार– अनुच्छेद 358 अनुच्छेद 19 में दिए गए मौलिक अधिकारों के निलंबन जबकि अनुच्छेद 359 अन्य मौलिक अधिकारों ( अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा दिए गए के अलावा) के निलंबन के बारे में है।

• अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जाता है, अनुच्छेद 19 के तहत दिए गए छह मौलिक अधिकारों को सिर्फ तभी निलंबित किया जाता है जब युद्ध और बाहरी आक्रमण के आधार पर आपातकाल की घोषणा की गई हो और आपातकाल सशस्त्र विद्रोह के आधार पर न लगाया गया हो।

• अनुच्छेद 359 राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए राष्ट्रपति को किसी भी न्यायालय में जाने का अधिकार देता है, सिर्फ अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर।

राष्ट्रपति शासन (राज्य आपातकाल)

अनुच्छेद 355 के अनुसार, संघ का कर्तव्य होगा कि वह बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की रक्षा करे और इस बात को सुनिश्चित करे कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार काम कर रही है।

अनुच्छेद 356 के तहत, राष्ट्रपति किसी राज्य में यह समाधान हो जाने पर कि राज्य में सांविधानिक तंत्र विफल हो गया है तो आपातकाल की घोषणा कर सकता है । सांविधानिक तंत्र के विफल होने की जानकारी सम्बंधित राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति को देता है ।

राष्ट्रपति शासन के प्रभाव ( राज्य आपातकाल)

• कार्यकारिणी पर– राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया जाता है और राज्य सरकार की कार्यकारिणी अधिकारों का प्रयोग केंद्र सरकार करने लगती है ।

• विधानमंडल पर– राज्य विधानमंडल कानून बनाने का काम नहीं करता; राज्य विधानसभा को निलंबित या भंग कर दिया गया जाता है ।

• वित्तीय संबंध पर– केंद्र और राज्य के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

संशोधन

1. 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976, में राज्य आपातकाल की अवधि छह माह से एक वर्ष के लिए बढ़ा दी गई है।

2. 44वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1978, राज्य में छह माहीने के आपातकाल के नियम को वापस लाया गया। इसमें आपातकाल की स्थिति को अधिकतम तीन वर्ष की अवधि के लिए किया जिसमें एक वर्ष सामान्य परिस्थितियों में आपातकाल और दो वर्ष असामान्य परिस्थितियों में आपातकाल की व्यवस्था की गई, इसके लिए निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा।

वित्तीय आपातकाल

अनुच्छेद 360– के तहत, अगर राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो कि ऐसी स्थिति पैदा हो चुकीं है जिसमें भारत या इसके किसी भी हिस्से की सीमा में, वित्तीय या साख की स्थिरता पर खतरा पैदा हो गया है, तो वे तत्काल प्रभाव से इस आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। यह आपातकाल देश कभी भी नहीं लगाया गया है ।

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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